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काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्

तुम इस पत्रके छोटे होनेकी शिकायत नहीं कर सकती।

सस्नेह,

बापू
 
शनिवार
 

रोलाँके पत्रके उस अंशके सही होनेके बारेमें, जो तुमने अब दुरुस्त कर दिया है, यकीन नहीं था । अब पूरी तरह अर्थ समझमें आता है । मूल पत्र वापस न भेजो। अपने कागजोंमें नत्थी कर लेना ।

बापू
 

अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ५१९१) से ।

सौजन्य : मीराबहन


१३८. काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्

काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्की समितिने परिषद्के आगामी अधिवेशनके लिए श्री अमृतलाल ठक्करको अध्यक्ष चुना है; इसके लिए में समितिको बधाई देता हूँ।

इस पदके लिए राजनीतिके क्षेत्रमें प्रख्यात अनेक व्यक्तियोंके नाम आये थे लेकिन श्री अमृतलाल ठक्करका नाम आनेपर किसीके लिए कहनेको कुछ रह ही नहीं गया । उनके अध्यक्ष चुने जानेके पीछे मुख्य बात, जैसा कि मैं समझा हूँ, यह थी कि अध्यक्ष वह व्यक्ति होना चाहिए जो काठियावाड़का हो, चरित्रवान हो और देशसेवाके रंग में रँगा हुआ हो। इस त्रिविध कसौटीपर श्री अमृतलाल ठक्कर खरे उतरे। चरित्रमें श्री अमृतलाल ठक्करसे बढ़कर हो, ऐसा सेवक आज न तो काठियावाड़में मिल सकता है, न गुजरातमें और न समस्त हिन्दुस्तानमें ही मिल सकता है। देशके लिए उन्होंने जो त्याग किया है वह कदाचित् हम सबसे ज्यादा पुराना है। अपने स्वीकृत कार्यके प्रति उनकी एकाग्र निष्ठा उन्हें और देशको शोभान्वित करती है और सेवा- परायणतामें उनकी स्पर्धा करना मुश्किल है। उन्होंने जिस सेवा क्षेत्रको चुना है वह जितना आसान है उतना ही कठिन भी है। आसान इसलिए कि जिन जातियों- की सेवाका कार्य उन्होंने चुना है उनकी सेवामें रस लेनेवाले व्यक्ति बहुत थोड़े हैं और इस कारण उन्हें इस सेवाका परिणाम भी तुरन्त मिलता है। कठिन इसलिए है कि उस सेवाके कोई ऐसे परिणाम नहीं निकलते जिससे दुनियाकी आँखें चौंधिया उठें । फलतः अनुभवहीन लोग वहाँसे भाग खड़े होते हैं। लेकिन अमृतलाल ठक्कर ढेढ़ और भंगियोंके पुरोहित हुए और फिर इतनेसे ही सन्तुष्ट न रहकर भीलोंके सेवक और मित्र बने ।

१. देखिए परिशिष्ट २

२. यह अधिवेशन पोरबन्दर में मार्च १९२७ में होना था, लेकिन हुआ जनवरी १९२८ में ।