पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/४५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो उससे अधिक है। लिंकन जिलेकी कई फर्मों हैं जिन्होंने पूरे साज-सामानके साथ अपने विक्रय और तकनीकी संगठन भारतमें खोल रखे हैं। किन्तु भारतके सरकारी प्रतिनिधि चाहते हैं कि ये फर्मों वहाँ अपने कुशल तकनीकी प्रतिनिधि रखें जो मौकेपर जाकर सलाह या सहायता दे सकें। बहुत पेचीले कलपुर्जोंकी बिक्री के लिए तकनीकी सलाहकारोंकी सहायता की जरूरत पड़ती है। बेचनेवालेके पास हर समय एक ऐसा तकनीकी सलाहकार होना चाहिए जो व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ाने में उसकी मदद कर सके। इसलिए यह जरूरी है कि बिक्री के लिए रखी गई या बेची गई मशीनोंके विषयमें भारतके खरीदने- वाले इन्जीनियरोंको विस्तृत जानकारी देनेके लिए जानकार ब्रिटिश प्रतिनिधि उनके साथ सम्पर्क रखें। भारत जो मशीनें बाहरसे मँगाता है उसमें ८० प्रतिशत मशीनें अब भी ही होती हैं और अधिकांश ब्रिटिश फर्मोके खास अपने प्रतिनिधि भारतमें मौजूद हैं मगर मुझे ऐसे खरीदनेवाले भी मिले हैं जिन्हें यह शिकायत थी कि उन्हें ब्रिटिश विशेषज्ञोंसे वांछित सहायता प्राप्त नहीं हुई। उनकी एक शिकायत यह भी थी कि भारतमें हम मालका काफी स्टाक तथा मशीनी पुर्जे नहीं रखते।

भारतमें कृषि यंत्रों की बिक्रीके सम्बन्ध में मुझे मालूम है कि ब्रिटिश फर्मोंने इस बाजारके विकासके लिए काफी कष्ट और खर्च उठाये हैं, किन्तु उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली। खैर, भारत सरकार अपने किसानोंको सहायता देनेका भरसक प्रयत्न कर रही है, और इसका एक सबसे अच्छा उपाय है किसानोंके हाथमें अच्छे औजार देना। भारतमें कृषि और सहकारी ऋण विभाग इस उद्देश्यसे खोले जा रहे हैं कि वहाँ लोग आधुनिक औजारों- का इस्तेमाल करना और उनकी मरम्मत करना सीखें तथा उन औजारोंको खरीदनेमें ये विभाग लोगोंकी सहायता करें।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि श्री सैमुअलका यह विश्वास ही है कि हम समृद्ध हैं और अगर हम कृषि सम्बन्धी और दूसरे प्रकारको वे सारी मशीनें, जो इंग्लैंड तैयार कर सकता है, खरीदें और वहाँके विशेषज्ञोंसे काम लें तो हम और समृद्ध होंगे। मगर ये दोनों बातें हम लोगोंको सत्यसे काफी दूर जान पड़ती हैं। हम जानते हैं कि भारत समृद्ध नहीं है; वह दिनोंदिन निर्धन होता जा रहा है। हममें से कुछ लोग यह भी जानते हैं कि इंग्लैंड या किसी भी दूसरे देशसे अन्धाधुन्ध मशीनें मँगाने और कुशल विशेषज्ञ बुलानेसे गरीबीका यह मसला हल नहीं होगा। जैसा कि गोखलेने कई साल पहले कहा था कि इस प्रकार बाहरसे माल मँगानेसे हमारा अपना विकास रुकता है। हम अधिकाधिक गुलाम बनते जाते हैं। हमें जरूरत है अपने हाथ- पैरोंसे काम करनेकी शक्तिमें आवश्यक तकनीकी दक्षता जोड़नेकी, ताकि हम स्वयं अपनी जरूरतोंके लायक यन्त्र बना सकें। बिना सोचे-विचारे पश्चिमकी नकल करनेका फल होगा, सभी प्रकारके उद्यम और योग्यताओंपर पानी फेरना । उसके फलस्वरूप