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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वप्नदोष हुआ है, उठकर कटि-स्नान करो। यदि तुमसे ऐसा न हो सके तो अशुद्धं भागको साफकर रामनाम जपो इतनी सफाई भी पूरा प्रायश्चित्त है। क्या करना चाहिए, यह बात हमारी उस समयकी मानसिक वृत्तिपर निर्भर करती है। इतनी शुद्धि करने के बाद जो-कुछ हुआ उसके लिए दुखी नहीं होना चाहिए, उसपर विचार नहीं करते रहना चाहिए। खानेमें, पढ़ने में विचार करनेमें अथवा संग करनेमें यदि हमसे कोई भूल हो गई हो तो उसे दुबारा नहीं करना चाहिए। बिना इरादा किये होनेवाले स्वप्नदोषसे तो केवल निर्विकार मनुष्य ही अटूट प्रयत्न करनेसे बच सकता है।

रातका भोजन और अल्लम-गल्लम खाना छोड़ देना चाहिए, स्वादके लिए कुछ नहीं लेना चाहिए। जिसे खाये बिना काम ही नहीं चले उससे प्राप्त स्वादसे ही सन्तोष रखना चाहिए ।

बापूके आशीर्वाद
 

[ पुनश्च : ]

तुम्हारे भाईका अभी कोई समाचार नहीं मिला।

[ इस पत्रको ] दुबारा नहीं देखा है।

गुजराती पत्र (एस० एन० ९४९१) की फोटो-नकलसे ।

१५४. पत्र : हरदयाल नागको

[ १७ दिसम्बर, १९२६ ]
 

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला जिसे पाकर मुझे बड़ी खुशी हुई। मैं नहीं जानता कि गौहाटी में मैं क्या करूंगा। मैं तो जैसा मेरी अन्तरात्मा कहेगी, वैसा ही करूँगा ।

निश्चय ही चरखा बंगालमें खतम नहीं हो रहा है । शायद चाँदपुरमें ऐसा हो रहा हो। बंगाल में खद्दरका उत्पादन बराबर बढ़ रहा है और उसकी बिकी भी ।

यदि आपका स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं चल रहा है तो मैं निश्चय ही ऐसा नहीं समझता कि आपको गौहाटी आनेके लिए कष्ट देना मुनासिब है। मैं वहाँ जो भी कुछ करूँगा, वह निःसन्देह आम जनताकी जानकारीमें आयेगा । लेकिन मैंने सभी असहयोगियोंको बता दिया है कि वे कोई ऐसी आशा लेकर गौहाटी न आयें कि वहाँ आतिशबाजीका कोई तमाशा होगा। यहाँतक कि वे खद्दरके सिवा किसी असहयोग कार्यक्रमपर भी विचार किये जानेकी आशा न करें ।

[ अंग्रेजीसे ]

फॉरवर्ड, २४-१२-१९२६

१. साधन-सूत्र के अनुसार।

२. पत्र-लेखकने गौहाटी कांग्रेस अधिवेशनमें गांधीजीका कार्यक्रम जानना चाहा था।