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१५८. पत्र : राजकिशोरी मेहरोत्राको

वर्धा
 
सोमवार [२० दिसम्बर, १९२६ या उससे पूर्व ]
 

चि० राज किशोरी,

तुमारे साथ बहोत बातें करनेका मेरा दिल था परन्तु मुझे समय न मीला । परसरामके कहनेपर मुझे पता मीला कि तुमारा चित्त आश्रममें शांत नहि रहता है। तुमको आश्रममें बलात्कारसे रखनेका परसरामका इरादा नहि है। यदि तुमारा दिल किसी और जगह रहना है तो तुम रह सकती है। परसरामको आश्रमसे हटने के लीये मजबूर नहि करना चाहिये । परसराम तुमारी आजीविकाके लीये बद्ध है तुमारे हि साथ रहनेके लीये नहि, यदि तुमारा दिल वह जहां रहे वहां रहेनेका न हो तो पत्नि पतिके पीछे जाती है, पति पत्निके पीछे नहीं जा सकता है। क्यों कि पति आजीविका या आत्मोन्नतिके कारण और जगह जानेके लीये कोई बार मजबूर हो जाता है।

तुमारी और लड़कोंकी तबीयत अच्छी होगी। तुमारे सब ख्याल मुझे वगैर संकोच के लोखो ।

बापूके आशीर्वाद
 

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ४९५३) से ।

सौजन्य: परशुराम मेहरोत्रा मेहरोत्राको

१५९. पत्र : परशुराम मेहरोत्रको

मौनवार [२० दिसम्बर, १९२६ या उससे पूर्व

"सौंपे गये कामको करते जाओ । निर्देश भेज रहा हूँ । "

यह तार मीला होगा। तुम्हारे कार्य में पचे रहो । मात पिताको जो रुपये 'यं० इं०' और हिंदी शिक्षा ई० काम कीया करो । ज्यादा मेरे वहाँ आनेपर । चिंता छोड़ो।

बापूके आशीर्वाद
 

१ और ३. तिथिका निर्णय परशुराम मेहरोत्राने स्मृतिके आधारपर स्वयं किया है। २० दिसम्बरको सोमवार था ।

२. पत्रका प्रथम पृष्ठ उपलब्ध नहीं है।

४. मूल पत्रमें तारका पाठ अंग्रेजी लिपिमें दिया गया है, लेकिन यहां उसका अनुवाद कर दिया गया है।

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