अपनी तबीयतके बारेमें मैं कुछ नहीं लिखता, क्योंकि वह बहुत अच्छी है। जमना- लालजी और जानकीबहनने मुझे बचाकर खूब शान्ति दी है। मेरा वजन चार पौण्ड बढ़ गया मालूम होता है। भोजन बराबर किया जा सकता है। वा की बनाई हुई प्रसादी हमेशा चखता हूँ। वह अभीतक चल रही है।
मैं यहाँसे कल रवाना होऊँगा । बम्बईसे मीठबहन,' जमनाबहन और पेरिनबहन खादीके कामके लिए आ रही हैं। उनसे में गोंदियामें मिल जाऊँगा । गोंदिया कहाँ है, यह तुम्हें नकशेमें देख लेना चाहिए ।
दक्षाबहन और जर्मन बन कल गइ। एक बारडोली और दूसरी काशी ।
गुजराती पत्र (जी० एन० ३६३०) की फोटो-नकलसे ।
१६१. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको
भाई घनश्यामदासजी,
आपके दो पत्र मीले हैं। भाई श्रीप्रकाशका असल पत्र वापिस भेजता हुं । आपकी चेष्टाका सरल वर्णन पढ़कर मुझे आनंद हुआ है। इलेकशनसे हमारी आबोहवा गंदी हुई है। यह तो मैंने खूब देख लीया । इतना कार्यके बाद देशको लाभ नहि परंतु हानी हि होगी। परंतु आपको एसेंबलीमेंसे नीकल जानेकी सलाह में नहि दे सकता हूं । तटस्थ रहनेका अर्थ यह है कि एक भी वोट आप ऐसा न दें जिसमें किसीका दबाण हो जैसे प्रायः हमेशह बनता है।
आपने जो विश्वास मुझे दिलाया है वह अनावश्यक था। क्योंकि मुझे आपके शुभ प्रयत्नों श्रद्धा है तदपि आपका विश्वास मुझे प्रिय है।
में कलकत्ते २३ तारीखको पहोंचुंगा और उसी रोज गोहती जाऊंगा। ठहरने का भाई खंडे [ ल ] वालके यहां है। जब मैं कलकत्ते में था तब आया जाया करते थे । दुबारा कलकत्ते जानेके समय यदि कोई राजकारण नहि होगा तो उनके यहां ठहरूंगा ऐसा मैंने कहा था उसपर वह जोर देते हैं। इसलीये वहीं ठहरना होगा। आप गोहती आनेवाले हैं क्या ?
मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१४१) से ।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला
१. मोठ्बहन पेटिट ।
२. पेरिनबहन कैप्टेन ।
३. गांधीजी २२ दिसम्बर, १९२६ को गोंदिया गये थे।
४. पत्रमें गांधीजीके गौहाटी जाते हुए २३ तारीखको कलकत्ता पहुँचनेके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र पिछले सोमवारको जो २० दिसम्बरको पड़ा था, लिखा गया।