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१६२. भाषण : वर्धाकी सार्वजनिक सभामें'

[२० दिसम्बर, १९२६]
 

न मालूम लोग मुझसे और क्या करनेकी उम्मीद रखते हैं ? मैंने वर्ष भर चुप रहकर अत्यन्त गंभीरतासे विचार किया है और इस नतीजेपर पहुँचा हूँ कि अगर हम त्रिसूत्री कार्यक्रम, जिसमें मर्द और औरत, जवान और बूढ़े, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सरकारी नौकर और दूसरे सब लोग हिस्सा ले सकते हैं, पूरा कर सकें तो स्वराज्य क्या रामराज्य भी मिल सकता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि अगर हिन्दू और मुसलमानोंमें एकता न हुई, हम अब भी अस्पृश्यताके अभिशापसे मुक्त न हो सके और हमारे मध्यमवर्गीय लोगोंने स्वदेशी धर्मका पालन न किया तो स्वराज्य प्राप्त करना असम्भव है। आप यह न समझे कि मैं इस कार्यक्रमसे किसी दुराग्रह अथवा सनकीपनके कारण चिपका हुआ हूँ। इस संसारमें दो, केवल दो वस्तुएँ ऐसी हैं जिनके अलावा और कुछ ऐसा नहीं है जिसका मैं देशके लिए त्याग न कर सकूं। वे दो वस्तुएँ हैं -- सत्य और अहिंसा । मैं इन दोनोंका त्याग सारे संसारके लिए भी नहीं करूंगा। मेरे लिए सत्य ही ईश्वर है और ईश्वरको पानेका अहिंसाके सिवाय दूसरा कोई मार्ग नहीं है। मैं ईश्वर या सत्यको छोड़कर हिन्दुस्तानकी सेवा करना नहीं चाहता, क्योंकि जानता हूँ कि जो मनुष्य सत्यको छोड़ता है वह अपने देशको भी छोड़ सकता है, अपने प्रियसे-प्रिय सम्बन्धीका भी त्याग कर सकता है। अब काम करनेका समय आ गया है। आखिर कोई कबतक बोलता ही रहेगा। कोई एक बार, दो बार या सौ बार बोले मगर अन्तमें स्वयं काम करना या काम करके उदाहरण तो उसे दिखलाना ही पड़ेगा। अगर सारा हिन्दुस्तान एकमत होकर कहे कि हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य असम्भव है, तो भी मैं कहूँगा कि यह सर्वथा सम्भव है; अगर सत्य और ईश्वर नामकी कोई चीज पृथ्वीपर है तो हिन्दू- मुस्लिम ऐक्य भी सम्भव है। अगर लोग इकट्ठे होकर खादीको खुले आम जलाने लग जायें और कहें कि यह तो पागलकी बकवास है तो भी मैं कहूँगा कि उन्हीं लोगोंकी बुद्धि ठिकाने नहीं है। उसी प्रकार अगर भारतके सभी हिन्दू मेरे विरुद्ध एकमत होकर कहें कि आज हम जिसे अस्पृश्यता कहते हैं, वह शास्त्र-विहित या स्मृति-विहित है, तब में कहूँगा कि ये शास्त्र और ये स्मृतियाँ ही झूठी हैं। अपने धर्मके इन्हीं तीन मूल मन्त्रोंको, इसी कलमेको, इसी गायत्रीको, इसी प्रकार सुनाता हुआ में सभी जगह जाऊँगा, जिससे मैं अपने प्रति और अपने कर्त्ताके प्रति सच्चा रहूँ ।

[अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३०-१२-१९२६

१. महादेव देसाईके " साप्ताहिक पत्र "से उद्धृत ।

२. महादेव देसाईंने यही तिथि दी है।