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१६५. भाषण : अमरावतीमें व्यायामशालाके उद्घाटनके अवसरपर'

[२१ दिसम्बर, १९२६]
 

आप जानते हैं कि मुझे अपनी कमजोरियाँ मालूम हैं। जितना काम में कर सकूँ उससे अधिक काम उठाना मेरे स्वभाव में ही नहीं है। मगर डाक्टर पटवर्धनके अनु- रोधको टाला भी तो नहीं जा सकता था। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस अखाड़ेमें हिन्दू और मुसलमान बिना भेद-भावके लिये जाते हैं; और सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि 'अछूत' लड़के भी इसमें आते हैं। मुझे यह देखकर आनन्द हो रहा है कि यह संस्था इस प्रकार साम्प्रदायिकतासे अछूती है।

हमारे शास्त्रोंमें कहा गया है कि जो युवक अपने शरीरको स्वस्थ और सबल बनाना और उसका सदुपयोग करना चाहते हैं उन्हें बह्मचर्यका पालन करना चाहिए। मैं सारे देशमें घूमा हूँ। मुझे सबसे अधिक कष्ट यह देखकर होता था कि हमारे नव- युवक ऐसे हैं कि फूंक मारनेसे उड़ जायें । जबतक हमारे यहाँ बाल-विवाहका अभिशाप है, जबतक हमारे समाजमें बाल-विवाहसे उत्पन्न व्यक्ति हैं, तबतक अधिक शारीरिक श्रम असम्भव है। राजयक्ष्माके रोगीको दण्ड-बैठक करनेको कौन कहेगा ? अगर हमें नवयुवकों और नवयुवतियोंको स्वस्थ और सबल देखनेकी चाह है, अगर हम चाहते हैं कि हिन्दुस्तान मजबूती और तन्दुरुस्तीके रास्तेपर उन्नति करे तो हमें इस कुप्रथाकी जड़में कुल्हाड़ी मारनी पड़ेगी। मनुने कहा है कि विद्यार्थीको कमसे-कम २५ वर्षतक अवश्य ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए। जबतक ये बातें पूरी नहीं होतीं, कसरत और व्यायाम आदि व्यर्थ हैं।

मगर इसके अलावा एक और बात है जिसकी ओर मैं आप लोगोंका ध्यान खींचना चाहता हूँ। आप जानते हैं कि जिस बातका हिंसासे बहुत दूरका भी नाता हो, उससे मैं सम्बन्ध नहीं रख सकता। दूसरे लोग चाहे जो-कुछ कहें, मगर मेरा पक्का विश्वास है कि अहिंसाके सिवाय दूसरा रास्ता नहीं है और मेरे लिए तो यही सबसे बड़ा और शाश्वत धर्म है। इसपर कोई सज्जन पूछ सकते हैं कि तब मेरे जैसे अहिंसा- प्रेमीने इस संस्थासे सहकार किया ही क्यों ? इसका कारण स्पष्ट है। अहिंसाका अर्थ है हिंसाका उपयोग करनेकी शक्तिका त्याग । इसलिए जिसमें वह शक्ति है ही नहीं, वह अहिंसाका पालन कर ही नहीं सकता। अहिंसा बड़ी भारी आत्मिक शक्ति है। इसके पुजारीमें शारीरिक शक्तिके व्यवहारकी ताकत तो होनी चाहिए, मगर

१. यह भाषण महादेव देसाईके " साप्ताहिक पत्र " से लिया गया है।

२. महादेव देसाई लिखते हैं : “ वर्ष-भरका मौन [वर्षा में] २० तारीखकी शामको तोड़ा गया और कलसे यात्रा शुरू हो गई है। अमरावती, नागपुर और गोंदियाका दौरा किया गया। " गांधीजी २१ नवम्बरको नागपुरमें थे। सम्भव है कि गांधीजी उसी दिन अमरावती पहुँचे।