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भाषण : नागपुरकी सार्वजनिक सभामें

वह जानबूझकर, सोच-समझकर उस शक्तिसे काम न ले। ऐसा नहीं है कि शारी- रिक शिक्षा हिंसा करनेकी शक्ति पानेका रास्ता है; मगर हम अपने युवकोंको अहिंसा- पालनके लिए निर्बल बननेकी सलाह न दें। हथियार छीनकर किसीको अहिंसक नहीं बनाया जा सकता । हिन्दुस्तान में ब्रिटिश शासनके पापोंमें से एक पाप यह है कि हमारे हथियार हमसे जबर्दस्ती छीन लिये गये हैं। किन्तु यह किया गया हमें नपुंसक बनाने के लिए; अगर सम्भव होता तो भी यह हमें अहिंसक बनाने के लिए नहीं किया गया। मैं चाहता हूँ कि हिन्दुस्तान मजबूत बने और उसे हथियारका उपयोग करने की स्वतन्त्रता मिले; किन्तु वह फिर भी उस स्वतन्त्रताका उपयोग न करे ।

अतः शारीरिक शिक्षा देनेवाली ऐसी संस्थाओंको मैं पसन्द करता हूँ। मगर मैं चेतावनीका भी एक शब्द कहना चाहता हूँ। कोई भी संस्था जिसका उद्देश्य किसी जाति-विशेषको दबाना हो, चाहे वह जाति हिन्दू, मुसलमान, ईसाई या पारसी कोई भी क्यों न हो, वह मेरा आशीर्वाद नहीं पा सकती । मेरे आशीर्वादकी अधिकारी वही संस्था हो सकती है जिसका उद्देश्य सभी सम्प्रदायों, सभी जातियों, सभी समाजों, राष्ट्रके सभी युवकोंका शारीरिक कल्याण है, फिर वे किसी भी जाति या समाजके क्यों न हों। अगर मुझे यह नहीं मालूम होता कि आज जो व्यायामशाला मैंने खोली है, वह इसी प्रकार की है तो मैं यहाँ आता ही नहीं। एक बार और आपको बधाई देता हुआ मैं चाहता हूँ और भगवान् से प्रार्थना करता हूँ कि आप सभी सच्चे और पवित्र बनें और आपका जीवन हमारे राष्ट्र और धर्मोके लिए बलिदान रूप हो ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३०-१२-१९२६

१६६. भाषण : नागपुरकी सार्वजनिक सभामें

२१ दिसम्बर, १९२६
 

महात्माजीने लोगोंसे अनुरोध किया कि वे धन देकर तिलक विद्यालयकी सहा- यता करें। उन्होंने खद्दरमें अपना विश्वास फिरसे दुहराया और कहा कि यदि लोग मेरी सलाह माननको राजी हों तो वे कुछ ही वर्षोंमें स्वराज्य पा सकते हैं। लोगों- को विदेशी कपड़ा पहने देखकर उन्हें दुःख हुआ और उन्होंने कहा कि मैं 'महात्मा गांधोकी जय' सुनते-सुनते थक गया हूँ। मैं ठोस काम चाहता हूँ। उन्होंने कहा कि आज सुबहसे मैंने सक्रिय कार्य आरम्भ कर दिया है और चरखेके अपने सन्देशको सुनानेके लिए मैं भारतके कोने-कोनेका दौरा करूँगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

फॉरवर्ड २२-१२-१९२६

१. यह सभा चिटनिस पार्कमें तिलक विद्यालयके ७ वें वार्षिकोत्सवके अवसरपर हुई थी।