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१६७. गंगा और यमुनाका संदेश

एक मित्रने मुझे इस प्रकार लिखा है : '

हमारे यहाँ इन दोके अलावा दूसरी गंगाएँ और यमुनाएँ भी हैं। यह सच है कि उनके नाम दूसरे हैं। किन्तु वे सभी हमारे देशके विशाल मैदानोंको उत्तरसे दक्षिण और पूर्वसे पश्चिमतक सींच रही हैं। इन भित्रको गंगा और यमुना जो सन्देश देती हैं, भारतकी अन्य बड़ी-बड़ी नदियों द्वारा भारतवासियोंको वही एक मात्र सन्देश नहीं- मिलता। उनको देखकर हमें यह याद हो आता है कि जिस देशमें हम रहते हैं उसके लिए हमें क्या करना चाहिए। उनको देखकर हमें यह भी याद आता है कि जिस तरह ये नदियाँ क्षण-प्रतिक्षण लगातार अपनी शुद्धि कर रही हैं हमें भी उसी तरह निरन्तर आत्मशुद्धि करते रहना चाहिए। लगभग १० साल हुए मैंने लिखा था कि हिन्दुओंका प्रार्थना-मन्त्र गायत्री, गंगाकी ही अमूल्य देन है। प्राचीनकालके ऋषि- योंको गंगाके उज्ज्वल जलसे अवश्य ही प्रेरणा मिली होगी। आधुनिक व्यस्त जीवनमें तो हमारे लिए इन नदियोंका मुख्य उपयोग यही है कि हम उनमें गन्दी नालियाँ छोड़ते हैं और मालसे भरी नौकाएँ चलाते हैं। हम अपने इन कार्योंसे इन नदियोंको मलिनसे मलिनतर बनाते चले जा रहे । इन मित्रकी तरह हमारे पास इतना समय भी नहीं है कि हम इन नदियोंके किनारोंपर सैर करने जायें और वहाँ उस सन्देशको मौन होकर ध्यानपूर्वक सुनें जो वे अपने कलकल स्वरमें हमें देती हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २३-१२-१९२६

१६८. टिप्पणियाँ

अ० भा० च० सं० के प्रस्ताव

अ० भा० चरखा संघकी कार्यसमिति की गत १३ से १६ दिसम्बर, १९२६ तक वर्धामें होनेवाली बैठकमें निम्नलिखित प्रस्ताव स्वीकार किये गये :

(१) अ० भा० चरखा संघ या उसकी प्रान्तीय शाखाओंके द्वारा संचालित बिक्री केन्द्रोंको सीधे दूसरे कार्यालयोंसे थोक या फुटकर बिक्रीमें उधार व्यापार करनेकी सख्त मुमानियत की जाती है ।

(२) फेरी लगानेवाले जितनेकी खादी ले जाते हैं, उसकी कीमतके बराबर नकद जमानत उनसे माँगी जाये। खास हालतोंमें, जहाँ आवश्यक समझा जाये, अगर फेरी लगानेवाला वांछनीय व्यक्ति हो, किन्तु नकद जमानत न

१. पत्र यहीं नहीं दिया गया है। पत्रमें लेखकने यमुना नदीके किनारे प्राप्त हुए आनन्दका वर्णन किया था।