पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/४६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४१
टिप्पणियाँ

दे सके, तो उससे जात जमानत ली जा सकती है । फेरी लगानेवालोंको इस बातकी सख्त ताकीद तो की ही जाये कि वे किसी भी हालतमें उधार न बेचें और समय-समयपर हिसाब चुकता करते रहें। अगर किसी समय कोई फेरीवाला, बिके स्टाकका हिसाब चुकता न कर सके या वचा स्टाक हिसाबके अनुसार न हो तो उसे उसी समय हटा देना चाहिए और उससे बाकी पैसेकी वसूलीके लिए तुरन्त ही उपाय करना चाहिए।

(३) यद्यपि जिन स्थानोंमें, बिक्री केन्द्रोंको बिना हानि उठाये लोगोंसे चलाने योग्य मदद नहीं मिलती वहाँ बिक्री केन्द्र खोलना वांछनीय नहीं हैं, फिर भी समस्त प्रान्तीय विभागोंको यह हिदायत दी जाती है कि वे उन बिक्री केन्द्रोंको बन्द कर दें जिनमें दो सालके अनुभवके बाद भी यह मालूम हुआ है कि खर्च, बरस-भरकी कुल बिक्रीके ६ प्रतिशतसे ज्यादा आता । नये केन्द्र सिर्फ वहीं खोले जायें जहाँ यह आशा हो कि एक सालके भीतर बिक्रीका स्तर कमसे कम इस हदतक पहुँच जायेगा ।

(४) इस समय यह आवश्यक है कि हम अपनी शक्ति उन्हीं केन्द्रोंमें लगायें जिनमें अधिक बेकारीके कारण या हाथ-कताई और हाथ-बुनाई उद्योगकी विशेष सुविधाके कारण खादी तैयार करनेकी ज्यादा सहूलियत हो; इसलिए यह निश्चय किया जाता है कि प्रान्तीय एजेंटोंको और मन्त्रियोंको कामकी योजनाएँ पेश करते वक्त ऐसे उत्पादन केन्द्र नहीं खोलने या चलाने चाहिए जिन्हें केवल घाटेपर ही खोला या चलाया जा सकता है। किन्तु जहाँ आन्दोलनके लाभकी दृष्टिसे किन्हीं केन्द्रोंको नुकसान उठाकर भी कायम रखना वांछनीय समझा जाये, वहाँ यह ध्यान भी रखा जाना चाहिए कि उस प्रान्तमें उत्पादनमें कुल जितनी पूँजी लगी हो, ऐसे प्रारम्भिक प्रयत्नमें उसका १० प्रतिशतसे अधिक खर्च न किया जाये ।

केनियाके भारतीय

एक स्तम्भमें केनियाके किसी प्रवासी, श्री डी० बी० देसाईका पत्र दिया जा रहा है। इसमें बताया गया है कि केनियाके भारतीयोंपर लगभग १२ साल या इससे भी ज्यादा अर्सेसे जो व्यक्ति कर लगा हुआ है उसमें वृद्धि कर दी गई है। पत्रकी खास बात यह है कि इसमें सारी बात पूरी तफसीलके साथ कही गई है। यदि उसमें दिये हुए तथ्य सही हैं तो यह केनियाके यूरोपीयों और केनिया सरकारपर गम्भीर लांछनकी बात है। पाठकोंको स्मरण होगा कि केनियाके भारतीयोंने इस व्यक्ति-करको चुपचाप ही नहीं मान लिया था। यह अवश्य है कि उनका आपत्ति करना व्यर्थ हो गया था। फिर भी खयाल था कि इस अन्यायपूर्ण करमें वृद्धि नहीं की जायेगी। किन्तु यदि पत्र-लेखककी बात सही है तो एक मुद्रा सम्बन्धी चालाकी वरत कर यह कर ५० प्रतिशत बढ़ा दिया गया है अर्थात् वह २० शिलिंगसे ३० शिलिंग

१. पत्रके पाठके लिए देखिए परिशिष्ट ३ ।