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१७१. अखिल भारतीय चरखा संघ

अ० भा० चरखा संघकी सालाना रिपोर्ट अभी-अभी छपकर सामने आई है। वह इतनी संक्षिप्त है कि एक कार्यव्यस्त आदमी भी उसे पढ़ ले सकता है। चरखा- संघका अर्थ गरीबोंका संघ न होकर 'गरीबसे-गरीबके लिए संघ' है। यह संघ गरीब लोगोंका नहीं हो सकता, क्योंकि वे जानते ही नहीं कि संघ क्या चीज है। उनके पास फालतू मेहनत करनेकी ऐसी गुंजाइश ही नहीं है कि वे संघको श्रमदान कर सकें। इसलिए अगर उनके लिए कोई संघ होना ही है तो जरूरी यह है कि दूसरे लोग जो उनकी मेहनतपर गुजर करते हैं, अपने उन गरीबसे-गरीब भाइयोंके लिए [श्रमके रूपमें ] कुछ-न-कुछ दें। यह संघ ऐसे ही लोगोंको लेकर बना है। कामको देखते उनकी संख्या बहुत ही कम है। मेरी इच्छा है कि वे और अधिक होते। मगर वे अधिक हों या कम, उनका काम महत्त्वपूर्ण है। रजिस्टरमें ११० धुनिये, ४२,९५९ कतैये और ३,४०७ बुननेवाले दर्ज हैं। कमसे-कम ९ लाखसे भी कुछ अधिक हो रुपयेकी रकम इनमें वितरित हुई। मजदूरी देनेका यह काम १५० उत्पादन केन्द्रों- पर हुआ और उनके द्वारा मोटे हिसाबसे १५०० गाँवोंको सहायता पहुँची। मैंने ये मुख्य-मुख्य बातें पाठकोंकी दिलचस्पी बढ़ाने के विचारसे ही दी हैं। रिपोर्टमें फाजिल शब्द एक भी नहीं है। यह केवल बातरतीब इकट्ठे किये हुए और सजाये हुए अंकों और कार्योंकी विवरण-सूची मात्र है। पाठक अगर देखना चाहें तो उसमें उन्हें साल-भरके भीतर तैयार की गई और बेची गई खादीके भी आँकड़े मिलेंगे। उसमें यह भी मिलेगा कि इस बढ़ते हुए संगठनसे कितने नवयुवकोंका गुजर होता है और कितने अन्य दूसरे सहायक उद्योग चलते हैं। अ० भा० चरखा संघ कार्यालय, अहमदाबादको चार आनेके टिकट भेजनेपर रिपोर्ट मिल सकती है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २३-१२-१९२६