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१७४. तार : इन्द्र विद्यावाचस्पतिको '

[ २४ दिसम्बर, १९२६]
 

स्तब्ध कर देनेवाला तार मिला । पिताजीको तो वीरगति मिली है।

हिन्दी नवजीवन ६-१-१९२७

१७५. भाषण : अ० भा० कां० क०की बैठक, गौहाटीमें

[२४ दिसम्बर, १९२६]
 

मेरे पास अखबारवाला आया था और कुछ जाहिर करनेका आग्रह उसने दो बार किया। मैंने उसे कह दिया कि मुझसे कुछ कहना पार लगे मेरी ऐसी हालत नहीं है। श्रीमती नायडूने भी मुझे यहाँ कहा कि कुछ सन्देशा प्रकट करो। उनसे भी मैंने इनकार कर दिया। अब पीछेसे मुझे यही आज्ञा होती है इसलिए अपना उद्गार निकालनेकी कोशिश करता हूँ, किन्तु मेरी ऐसी दशा नहीं है कि मैं कुछ कह सकूँ । हाँ, तत्काल मेरे मनपर कैसा असर हुआ यह मैं कह सकता हूँ सही । लालाजीका तार मेरे पास पहुँचते ही तुरन्त मैंने मालवीयजी वगैरहको खबर भेजी और लालाजी और स्वामीजीके सुपुत्र इन्द्रको तार भेजा । इस तारमें दुःख या शोक प्रकट न करके मैंने तो जनाया कि यह सामान्य मृत्यु नहीं है। इस मृत्युपर में रो नहीं सकता। अगर्चे कि यह मृत्यु असह्य है तो भी मेरा दिल शोक करनेको नहीं कहता और कहता है कि यह मृत्यु हम सबको मिले तो क्या ही अच्छा हो !

स्वामी श्रद्धानन्दकी दृष्टिसे इस प्रसंगको धर्म-प्रसंग कहेंगे । वे बीमार थे। मुझे तो कुछ खबर न थी, किन्तु एक मित्रने खबर दी कि स्वामीजी भाग्यसे ही बच जायें तो बच जायें। पीछेसे मेरे तारके उत्तरमें उनके लड़केका तार मिला कि वे धीरे-धीरे ठीक हो रहे हैं। यह भी मालूम हुआ कि डाक्टर अन्सारी बहुत अच्छी तरह सेवा- शुश्रूषा कर रहे हैं। इस प्रकारकी गम्भीर बीमारीमें वे बिछौनेपर पड़े थे और उस बिछौनेपर ही उनके प्राण लिये गये । मरना तो सबको है, किन्तु यों मरना किस कामका ? सारे हिन्दुस्तान में और पृथ्वीपर जहाँ-जहाँ हिन्दुस्तानी लोग होंगे, वहाँ- वहाँ स्वाभाविक बीमारीसे ही स्वामीजीके मरनेका जो असर होता उसकी अपेक्षा इस अपूर्व मरणसे अजब ही असर होगा। मैंने भाई इन्द्रको हमदर्दीका एक भी तार

१. महादेव देसाईने अपने “गौहाटीका पत्र" में लिखा है कि यह तार गांधीजीने स्वामी श्रद्धानन्दको हत्याकी खबर सुननेके बाद दिया था।

२. भाषणका यह पाठ महादेव देसाई द्वारा लिखित “गौहाटीका पत्र" से लिया गया है।