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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

या पत्र नहीं लिखा है । उन्हें और कुछ दूसरा कह ही नहीं सकता। इतना ही कह सकता हूँ कि तुम्हारे पिताको जो मृत्यु मिली है वह धन्य मृत्यु है ।

किन्तु यह सब बात तो मैंने स्वामीजीकी दृष्टिसे, मेरी अपनी दृष्टिसे की है । मैं अनेक बार कह चुका हूँ कि मेरे लेखे हिन्दू और मुसलमान दोनों ही एक हैं। मैं जन्मसे हिन्दू हूँ और हिन्दू-धर्ममें मुझे शान्ति मिलती है । जब-जब मुझे अशान्ति हुई, हिन्दू- धर्म में ही मुझे शान्ति मिली है । मैंने दूसरे धर्मोका भी निरीक्षण किया है और इसमें चाहे जितनी कमियाँ और त्रुटियाँ होयें तो भी मेरे लिए यही धर्म उत्तम है। मुझे ऐसा ही लगता है और इसीसे मैं अपनेको सनातनी हिन्दू मानता हूँ । कितने सनातनियोंको मेरे इस दावेसे दुःख होता है कि 'विलायतसे आकर यह सुधरा हुआ आदमी हिन्दू कैसा ? ' किन्तु मेरा हिन्दू होनेका दावा इससे कुछ कम नहीं होता और यह धर्म मुझे कहता है कि मैं सबके साथ मित्रतासे रहूँ । इसीसे मुझे मुसलमानोंकी दृष्टि भी देखनी है ।


मुसलमानकी दृष्टिसे जब इस बातका विचार करता हूँ तो मुझे दूसरी ही बात मालूम पड़ती है । यह काण्ड मुसलमानके हाथ बन पड़ा । धर्मचर्चा के बहाने घरमें प्रवेश करके उसने यह कृत्य किया। नौकरने तो कहा, 'स्वामीजी बीमार हैं। आज नहीं मिल सकते।' दरवाजेपर हुज्जत हुई। स्वामीजीने सुनकर कहा, 'अच्छा है, आ जाने दो।' और स्वामीजीके उससे बात करनेको न रहनेपर भी उन्होंने बातेंकी बात करनेकी तो उनमें ताकत ही नहीं थी. - स्वामीजीको तो उसे समझा कर बिदा कर देनेको था, इसलिए बुलाकर कहा, 'भाई, अच्छे हो जानेपर तुम्हें जितनी बहस करनी हो कर लेना, किन्तु आज तो बिछौनेपर पड़ा हूँ।' इसपर उसने पानी माँगा । धर्मसिंहको स्वामीजीने आज्ञा दी, 'इनको पानी पिलाओ।' आज्ञाकारी नौकर पानी लेने जाता है तबतक तो यहाँ उसने रिवाल्वर निकाल ली । एकसे संतोष न हुआ तो दो गोली मारी । स्वामीजीने उसी समय प्राण खोये | धर्मसिंह आवाज सुनकर अपने मालिकको बचाने दौड़ा किन्तु बचावे कौन ? ईश्वरको स्वामीजीके शरीरकी रक्षा नहीं करनी थी । धर्मसिंहके ऊपर भी वार हुआ । उसे चोट लगी । वह अस्पतालमें है । मारनेवाला अब्दुल रशीद हिरासतमें है । ऐसे संयोगके बीच किये गये इस खूनसे मुस- लमानोंके लिए हिन्दुओंमें कैसा भाव आयेगा, इसका मुझे बहुत दुःख है और इसमें भी शंका नहीं है कि हिन्दू जनताको मुसलमानोंके प्रति उल्टा खयाल आयेगा । क्योंकि आज दोनों जातियोंमें मुहब्बत नहीं है, विश्वास नहीं है। दोनों जातियाँ जानती हैं कि एक दिन तो मिलकर भाइयोंके जैसा रहना ही है, किन्तु दोनों ही कमजोर होनेके कारण एक दूसरेसे लड़कर मजबूत होने और तब एकत्र होनेकी आशा रखती हैं। इससे आज अखबारोंमें जो गन्दगी फैल रही है, जो जहर पैदा हो रहा है, उसे देखकर यह कहना कठिन है कि इस कृत्यका क्या परिणाम होगा । इसीसे में खामोश रहना चाहता था। मेरे दिलमें जो तूफान उछल रहा है, उसे में शान्त नहीं कर सकता, दबा नहीं सकता और तुम्हारे आगे व्यक्त नहीं कर सकता ।

हमारे लिए यह एक अच्छा शिक्षा-पाठ बनना चाहिए कि स्वामीजीका खून अब्दुल रशीदके हाथों हुआ । इससे हम एक-दूसरेको समझ लेवें; अगर हम यह समझ