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भाषण : अं० भा० कां० कं० की बैठक गौहाटी में

लें कि हम लड़कर साथ नहीं रह सकते तो क्या ही अच्छा हो! किन्तु आजका वातावरण देखकर मुझे यह आशा नहीं होती कि हम एक ही खूनसे बच जायेंगे ।

श्रद्धानन्दजी और मेरे बीच कैसा सम्बन्ध था, यह तो आज मैं यहाँ नहीं कहूँगा । मेरे सामने वे अपने दिलकी बातें कहा करते थे। कोई छ: महीने हुए जब वे आश्रममें आये थे, तब कहते थे, 'मेरे पास धमकीके कितने पत्र आते हैं। लोग धमकी देते हैं कि तुम्हारी जान ले ली जायेगी। पर मुझे उनकी कुछ परवाह नहीं।' वह तो बहादुर आदमी थे। इनसे बढ़कर बहादुर आदमी मैंने संसारमें नहीं देखा। मरनेका उन्हें डर नहीं था, क्योंकि वे सच्चे आस्तिक, ईश्वरवादी आदमी थे । इसीसे उन्होंने कहा, 'मेरी जान अगर ले ही ली जाये तो उसमें होना ही क्या है ।' यह खून हुआ तो उसमें आश्चर्य ही क्या है ? एकसे अधिक खून भी होयें तो भी आश्चर्य क्यों होना चाहिए ? आज तो एक मुसलमानने एक हिन्दूका खून किया है, किन्तु अगर कोई हिन्दू किसी मुसलमानका खून करे तो भी आश्चर्य न हो। ईश्वर करे ऐसा एक भी प्रसंग न आये । किन्तु जब हम अपनी जबान और कलमपर काबू न रख सकेंगे तो और दूसरा परिणाम होगा क्या? किन्तु मैं इतना कहना चाहता हूँ कि अगर कोई हिन्दू इस खूनकी नकल करे तो वह हिन्दू धर्मको लज्जा देगा ।

मैंने तो कहा है कि अज्ञानी लोग जो लड़ते हैं उसकी बनिस्बत एक-दूसरेको दुश्मन माननेवाले नेता ही लड़ लेवें तो क्या ही अच्छा हो । किन्तु ऐसा न होना चाहिए कि इन अज्ञान लोगोंमें से एक आदमी भी नेताओंमें से किसीकी जान ले ।

आज हम ईश्वरसे माँगें कि इस खूनका हम सच्चा अर्थ कर लें। मुसलमानों और हिन्दुओंकी परीक्षाका यह समय है। हिन्दू शान्ति रखें और इस खूनका बदला लेनेकी इच्छा न करें। इस खूनसे यह न मान बैठें कि अब हमारे और मुसलमानोंके बीच दुश्मनी शुरू हो गई है और अब हिन्दू-मुसलमान ऐक्य असम्भव है। अगर ऐसा वे मानेंगे तो वे भी गुनहगार होंगे और अपने धर्मको वे कलंक लगायेंगे। मेरी मतिके अनुसार तो एक भी मुसलमान अगर ऐसा मानता हो कि रशीदने जो-कुछ किया, ठीक ही किया तो ऐसा मानकर वह अपने धर्मको दाग लगायेगा । मुसल- मानोंका धर्म यह नहीं है। वह दूसरा ही है। मुसलमान धर्मकी सच्ची खूबियाँ बतलाने का यह प्रसंग मुसलमानोंको मिला है। श्रद्धानन्दजी और हिन्दुओंको तो जो चाहिए वह मिल ही गया, किन्तु में मनुष्यकी हैसियतसे, मुसलमानोंका मित्र और भाई होने के कारण कहता हूँ कि अगर हम दोनों जातियाँ इसको समझ लेवें तो हम दोनोंके लिए यह लाभदायी हो पड़ेगा। हम दोनोंको ही इस परीक्षामें से निकलनेकी ईश्वर हमें सद्बुद्धि और भक्ति दे और हम प्रार्थना करें कि इस कृत्यके परिणामस्वरूप हम इस प्रकार परस्पर बर्ताव करें कि ईश्वर कहे कि दोनों जातियोंको जो करना चाहिए था वही उन्होंने किया है।

हिन्दी नवजीवन, ६-१-१९२७

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