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अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डल

भिक्षा देना अपराध है। चरखा संघने जिन ५०,००० स्त्रियोंको काम दिया है वे ऐसी हैं जिनके पास कोई रोजगार नहीं था और जो एक धेला भी नहीं कमाती थीं। यदि उसकी गतिविधियोंको और बढ़ाया जा सके, और यदि लोगोंको यह मालूम हो कि पंडित मोतोलाल नेहरू, पंडित मालवीय और मौलाना मुहम्मद अली-जैसे नेता चरखेको अपना रहे हैं, तो मेरा सन्देश लोग सुनेंगे और भिखारियोंकी समस्यासे भी निपटा जा सकेगा। अभी बहुत बड़े क्षेत्रको इस आन्दोलनके अधीन लाना बाकी है, क्योंकि भारतमें सात लाख गाँव हैं । १९२१ में खद्दरकी जो कीमत थी, आज वह लगभग उससे आधी है, और ऐसा कहना भी निश्चय ही गलत होगा कि अब पहलेके मुकाबले खद्दरका उत्पादन कम हो गया है।

[ अंग्रेजीसे ]

फॉरवर्ड, २७-१२-१९२६

१७७. अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डल

कहा जा सकता है कि इस मण्डलका काम धीमी गतिसे ही चलता है । इसकी कार्यवाहक समितिको बैठक इस मासकी १७ तारीखको वर्धामें हुई थी। बैठकमें समितिके सदस्य पूरी संख्या में उपस्थित नहीं थे, इसलिए आधा घंटा इन्तजार करनेके बाद समितिका काम चलाने का प्रस्ताव किया गया । तभी एक सदस्य डा० मुंजे आ पहुँचे और काम उपस्थित सदस्योंकी आवश्यक संख्यासे ही शुरू हुआ । किसी भी संस्थामें ऐसा होना नहीं चाहिए। लेकिन हम लोगोंको रचनात्मक कार्यों में कम अथवा तनिक भी दिलचस्पी नहीं होती, इसलिए ऐसे कार्यों में यदि उसमें आर्थिक लाभ न हो तो बहुत ही कम लोग शामिल होते हैं।

इस मण्डलका कार्य दुग्धालयों तथा चर्मालयोंकी मार्फत गोरक्षा करना है, इसलिए उसमें परिश्रम, पैसा, बुद्धि आदिकी ही आवश्यकता है। इसलिए उसमें कौन उपस्थित होना चाहेगा ?

तथापि गोरक्षाका प्रश्न धार्मिक और आर्थिक दृष्टिसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ढोरोंकी रक्षा और संवर्धन के बिना खेती नहीं हो सकती और खेतीके बिना मनुष्य नहीं जी सकता। इसके अतिरिक्त ढोरोंके बिना दूध नहीं मिल सकता और दूधके बिना जनताका जीवन दूभर हो जायेगा ।

ढोरोंकी रक्षा और उनके संवर्धनका प्रश्न उनका ज्ञानपूर्वक पालन करनेपर निर्भर है और यह ज्ञान उसके लिए परिश्रम किये बिना सम्भव नहीं है। इसलिए अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डलका हेतु प्रयोगोंके द्वारा इस ज्ञानकी वृद्धि करना है, और चमड़ेके व्यापारके तथा चमड़ा कमानेके धन्धेके प्रति जनतामें जो घृणा है उसे दूर करना है।