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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसमें दिलचस्पी कौन ले ? सब विचारवान स्त्री-पुरुषोंको इसमें दिलचस्पी लेनी चाहिए। लेकिन बहुत से लोग लें अथवा कम लोग लें, पर ऐसे मण्डलोंको दृढ़तापूर्वक अपना काम जारी रखकर अपनी श्रद्धाको सिद्ध करना चाहिए ।

अतएव समितिने चार प्रस्ताव पास किये हैं।

मण्डलको दुग्धालय चलानेकी विद्यामें निपुण एक सज्जनकी सेवाएं प्राप्त हैं, अतः मण्डलने तत्सम्बन्धी प्रयोग करने के लिए अध्यक्षको ५०,००० रुपये तककी राशि खर्च करनेकी सत्ता प्रदान की है। एक सज्जन चर्मालयके लिए भी मिल गये हैं, अतः तत्सम्बन्धी प्रयोग करने के लिए भी मण्डलने ५०,००० रुपयेकी एक और रकम खर्च करनेकी सत्ता दी है ।

मण्डलके पास अभी इतना पैसा नहीं है। अभी तो उसके पास मुश्किलसे दस हजार रुपये होंगे। बाकी तो जब मिलेंगे तब होंगे। लेकिन उनके मिलनेकी उम्मीद है। मित्रोंने सहायता करनेका वचन दिया है और यदि कार्य अच्छा हो तथा अच्छे कार्यकर्ता मिलें तो धन भी अवश्य मिल जाता है। ऐसा विश्वास होने के कारण मैंने समितिकी दी हुई उपर्युक्त सत्ता स्वीकार कर ली है। इस कार्य में जो गोसेवक मदद करना चाहें, मैं उन्हें मदद करनेका आमन्त्रण देता । पाई-पाईका हिसाब रखा जाता है और रखा जाता रहेगा। उसे समय-समयपर प्रकाशित किया जायेगा । कार्यकी सफलता-असफलताका आधार परिस्थतियोंपर है। उम्मीद तो यह है कि प्रयोगके अन्तमें हम यह सिद्ध कर सकेंगे कि दुग्धालय और चर्मालयकी ये दोनों प्रवृत्तियाँ स्वावलम्बी बनाई जा सकती हैं।

इस कार्यके लिए जिन कार्यकर्ताओंको नियुक्त किया गया है उनका परिचय में तनिक अनुभव प्राप्त करने के बाद देनेका विचार रखता हूँ । यदि ये प्रयोग सफल होते हैं तो इनमें मैं गोरक्षाके बीज देखता हूँ ।

दूसरे [ दो] प्रस्ताव मण्डलको सदस्यों के सम्बन्धमें स्वावलम्बी बनाने के बारेमें हैं। मण्डलको कार्यकर्ताओंकी आवश्यकता है, अधिकारियोंकी नहीं। इसलिए एक प्रस्ताव- में यह कहा गया है कि समितिके जो सदस्य लगातार समितिकी तीन बैठकोंमें अनुपस्थित रहेंगे उनकी जगह खाली हो जायेगी। यह प्रस्ताव आवश्यक है, क्योंकि जो लोग समितिके प्रस्तावों में अपनी रायका लाभ दे सकते हैं केवल उनकी ही जरूरत है । यदि वे उपस्थित नहीं होंगे तो लाभ किस तरह दे सकेंगे? इसके बारेमें मन्त्री प्रत्येक सदस्यके साथ पत्र व्यवहार करेगा।

चौथा प्रस्ताव सदस्योंसे सम्बन्धित है। जो सदस्य अपना दूसरे वर्षका चन्दा नहीं देगा वह सदस्य नहीं माना जायेगा। यह याद दिलाने के लिए है। यह अभीष्ट है कि इस मण्डलके सदस्य और प्रतिनिधि उत्तरदायी हों। वस्तुतः देखा जाये तो ये दो नियम समस्त संस्थाओंके लिए अनिवार्य होने चाहिए. सदस्योंके लिए चन्दा देना और प्रतिनिधियोंके लिए बैठकोंमें उपस्थित होना ।


मुझे उम्मीद है कि जो लोग मण्डलके उद्देश्यको पसन्द करते हैं वे उपर्युक्त चारों प्रस्तावोंका स्वागत करेंगे तथा यथाशक्ति सहायता देंगे।