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भाषण : ध्वजारोहण समारोहके अवसरपर

मन्त्रीके बारेमें तो कहा जा सकता है कि समितिको अपनी स्वीकृति मात्र देनी थी। श्री वालजी गोविन्दजी देसाईको २०० रुपये प्रतिमासपर मन्त्री रखा गया था। श्री वालजी देसाई गोसेवक हैं और विद्वान हैं। उन्होंने २०० रुपये कोई लोभवश नहीं माँगे थे; उनकी पारिवारिक जिम्मेदारी बड़ी होनेके कारण ही उन्होंने ऐसी माँग की थी। इनसे ज्यादा योग्य मन्त्रीकी खोज में नहीं कर सका। मण्डलके संवि धानके अनुसार मन्त्रीकी खोज करनेकी जिम्मेदारी मुझपर थी। जब मैंने वालजी देसाईको नियुक्त किया था तब कल्पना यह थी कि उन्हें सारा समय गोरक्षाका कार्य करना होगा। बादमें मैंने अनुभव किया कि उनका समय बच जाता है। हम दोनोंने निश्चय किया कि उस समयका सदुपयोग साहित्य-सेवाके लिए किया जाये और कुछ कमाई उससे की जाये। उन्हें ऐसा काम मिल रहा है। इसलिए उन्होंने मण्डलसे प्रतिमास ५० रुपये से ज्यादा न लेनेका विचार मण्डलके सदस्योंके सम्मुख रखा। पिछली जुलाईसे वह कम ही पैसे लेते रहे हैं। मण्डलने उनके इस निश्चयको साभार स्वीकार किया है और उन्हें इस बातकी छूट दी है कि यदि मण्डलके बाहरका काम मिलता हो तो अपने खाली समयमें वे उसे कर सकते हैं। मुझे कहना चाहिए कि खाली समयमें भाई वालजी जो काम करते हैं वह काम मण्डलका भले ही न कहलाये परन्तु वह अधिकांशतः गोसेवाका ही होता है। 'नवजीवन' के पाठकोंको यह बात बतानेकी कोई जरूरत ही नहीं है।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २६-१२-१९२६

१७८. भाषण : ध्वजारोहण समारोहके अवसरपर

२६ दिसम्बर, १९२६
 

डॉ० हार्डीकर और स्वयंसेवको,

में आज सुबह आप सबको यहाँ देखकर बहुत प्रसन्न हूँ। मुझे आशा है कि आज जो झंडा मैं फहरा रहा हूँ उसे हमेशा इसी प्रकार फहरते रखा जायेगा, और आप सब लोग ऐसे कार्य करेंगे जो इस महान झंडेकी शानके अनुरूप हों। मातृभूमिके प्रति की गई आपकी सेवाओंके लिए मैं आपको आशीष देता हूँ ।

[ अंग्रेजीसे ]

फॉरवर्ड, २७-१२-१९२६

१. गौहाटीमें कांग्रेस पंडालके बाहर ध्वजारोहण करनेके बाद गांधीजीने यह भाषण हिन्दीमें दिया था। डॉ० एन० एस० हार्डीकर स्वयंसेवकोंके प्रधान थे।