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१७९. प्रस्ताव और भाषण : कांग्रेस अधिवेशन, गौहाटी में

२६ दिसम्बर, १९२६
 

प्रस्ताव

स्वामी श्रद्धानन्दकी हत्यापर, जो कायरतापूर्ण और धोखेसे की गई, यह कांग्रेस घृणा और आक्रोश प्रकट करती है। उन्होंने अपना जीवन और अपने जबर्दस्त गुणोंको अपने देश और अपने धर्मकी सेवामें अर्पित कर रखा था और वे निर्भयता तथा निष्ठापूर्वक दलित, पतित और दुर्बल लोगोंके कल्याणमें लगे हुए थे। इस कांग्रेसके मतमें ऐसे वीर और नेक राष्ट्रभक्तकी दुखद मृत्युसे देशको जो क्षति पहुँची है, वह अपूरणीय है।

भाइयो और बहनो,

आपने गौर किया होगा कि जो प्रस्ताव मैंने पेश किया है, उसे पहले मौलाना मुहम्मद अली पेश करने वाले थे। लेकिन अध्यक्ष महोदयके आदेशपर मैं इसे पेश करने के लिए खड़ा हुआ हूँ। हमने अखबारोंमें देखा कि स्वामीजीकी हत्यासे देशभरमें शोक और त्रास व्याप्त हो गया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें इसी विषयपर बोलते हुए मैंने कहा था कि हमें स्वामीजीकी मृत्युपर शोक नहीं करना चाहिए। उन्हें तो एक सूरमाकी मौत मिली है; और ऐसी मृत्युकी कामना तो हममें से हरएकको हो सकती है। लेकिन मैं अपने इस अन्तिम कथनमें एक छोटा-सा सुधार करना चाहता हूँ। ऐसी मौत जब आती है तब हर वीर पुरुष उसका स्वागत करता है। वह उसका एक मित्रके रूपमें स्वागत करता है। लेकिन इसी कारण हमें ऐसी मृत्युको निमन्त्रित नहीं करना चाहिए या उसके लिए लालायित नहीं होना चाहिए। हम ऐसी इच्छा न करें कि कोई व्यक्ति गलत राहपर चलकर ईश्वर तथा मनुष्यके प्रति अपराध करे और हमें शहीद बननेका गौरव मिले। किसीके पथभ्रष्ट होनेकी कामना करना गलत है। हम सभीको बहादुर होना चाहिए ताकि शहीदकी मौत मिल जाये तो हम खुशीसे मर सकें; लेकिन शहीद होनेकी लालसा हममें नहीं होनी चाहिए ।


स्वामीजी सूरमाओंके भी सूरमा और वीरोंके भी वीर थे। उन्होंने निरंतर वीरतापूर्ण कार्यकलापोंमें लगे रहकर देशको चकित कर दिया था। उन्होंने देशको वेदीपर अपनेको बलिदान कर देनेका जो संकल्प किया था मैं उसका साक्षी हूँ ।

लेकिन क्या स्वामीजीने देशकी जो सेवाएँ कीं, उनके बारेमें विस्तारसे कुछ कहने- की जरूरत है ? सभी लोग जानते हैं कि स्वामीजी असहायोंके सहायक थे, निर्बलों और दलितोंके मित्र थे; और अस्पृश्योंके लिए उन्होंने जो काम किया, वह तो अनुपम है। मुझे भली प्रकार याद है कि एक बार उन्होंने मुझसे कहा था कि जबतक अखिल

१. इस भाषणका पाठ १३-१-१९२७ के यंग इंडियामें भी "वीरोंके वीर" शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था।