भारतीय कांग्रेस कमेटीका प्रत्येक हिन्दू सदस्य अपने घरमें एक 'अछूत' नौकर नहीं रखता तबतक अछूतोंके उत्थानके लिए कांग्रेस जो काम कर रही है वह पूरा नहीं होगा। यह बात अव्यवहार्य प्रतीत हो सकती है, लेकिन इससे अछूतोंके प्रति उनके असीम प्रेमका परिचय मिलता है ।
यहाँ मैं उनकी अन्य बहुत सारी सेवाओंकी चर्चा नहीं करूँगा । स्वामीजी जैसे महान और वीर राष्ट्रभक्त तथा ईश्वरके सेवक और भक्तकी हत्या के प्रसंगको भी देशहित में प्रयुक्त किया जा सकता है। लेकिन हम लोग चूंकि अपूर्ण पुरुष हैं, इसलिए उनकी दुखद मृत्युपर हमारा शोक करना स्वाभाविक है । और जब हम उन परिस्थितियोंका विचार करते हैं जिनमें उनकी मृत्यु हुई तो हमारे मनमें घृणा और आक्रोश उत्पन्न होना स्वाभाविक है । हत्यारेने स्वामीजीसे इस्लामके ऊपर चर्चा करनेके लिए भेंट करनी चाही । स्वामीजीके स्वामिभक्त नौकरने उसे अन्दर जानेसे मना कर दिया, क्योंकि उसे डा० अन्सारीका आदेश था कि जबतक स्वामीजी गम्भीर रूपसे बीमार हैं। तबतक वह किसीको स्वामीजीसे भेंट न करने दे। लेकिन स्पष्ट ही ईश्वरका आदेश कुछ और ही था । स्वामीजीके कानोंमें जब हत्यारेका अनुरोध पड़ा तो उन्होंने धरम- सिंहसे उसे आने देने को कहा। भाई अब्दुल रशीदको अन्दर आने दिया गया। में उसे जान-बूझकर भाई कह रहा हूँ, और यदि हम सच्चे हिन्दू हैं तो आप समझ जायेंगे कि मैं उसे भाई क्यों कहता हूँ । स्वामीजीने अपने नौकरसे अब्दुल रशीदको अन्दर आनेको कहा, क्योंकि ईश्वर स्वामीजीकी महानता और हिन्दू धर्मकी गरिमा दिखाना चाहता था । स्वामीजी बहुत अस्वस्थ थे और धार्मिक प्रश्नोंपर चर्चा करनेकी स्थितिमें नहीं थे, इसलिए उन्होंने उस अजनबीसे फिर कभी आनेको कहा । लेकिन वह गया नहीं । उसने कहा कि मैं प्यासा हूँ, और पानी माँगा । स्वामीजीने धरमसिंहसे पानी लानेको कहा, और धरमसिंहकी अनुपस्थितिका लाभ उठाकर अब्दुल रशीदने स्वामीजीके सीनेपर पिस्तौल चला दी ।
यह ऐसी घटना है जो भारतमें नहीं घटनी चाहिए थी - उस भारतमें जहाँ हिन्दू और मुसलमान, दोनों अपने धर्मपर गर्व करते हैं । 'गीता' को मैं जिस श्रद्धाके साथ देखता हूँ, उसी श्रद्धाभावसे मैंने 'कुरान' का अध्ययन किया है; और मैं कहता हूँ कि 'कुरान' में इस प्रकारकी हत्याका आदेश या अनुमति कहीं नहीं दी गई है। इस हत्याके सम्भव होनेका कारण यही है कि दोनों जातियाँ एक-दूसरेको घृणा और शत्रुताके भावसे देखती हैं। बहुतसे मुसलमानोंका विश्वास है कि लालाजी और माल- वीयजी मुसलमानोंके उतने ही घोर शत्रु हैं जितने कि उनकी रायमें स्वामीजी थे। दूसरी ओर, बहुतसे हिन्दू हैं जो सर अब्दुर्रहीम तथा अन्य कुछ मुसलमान सज्जनोंको हिन्दू धर्मका शत्रु मानते हैं। मेरी रायमें दोनों ही बिलकुल गलत हैं। स्वामीजी इस्लाम- के शत्रु नहीं थे, और न लालाजी और मालवीयजी ही हैं। लालाजी और स्वामीजीको अपने विचार स्वतंत्रतापूर्वक व्यक्त करनेका अधिकार है, और उनके विचारोंसे हम भले ही असहमत हों, लेकिन उनके विरुद्ध घृणाकी भावना भड़काना उचित नहीं है । फिर भी हम आज क्या देखते हैं ? मुसलमानोंका कोई अखबार ऐसा नहीं है जो इन