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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देशभक्तोंके खिलाफ कटुतापूर्ण भषाका इस्तेमाल न करता हो। मैं पूरी विनम्रतासे पूछता हूँ कि आखिर उन्होंने क्या गलती की है ? उनके काम करनेके ढंगसे हम असह- मत हो सकते हैं। लेकिन मुझे निश्चय है कि मालवीयजीको जो भारतभूषण कहा जाता है वह उनकी महान सेवाके कारण ही कहा जाता है। लालाजीकी सेवाओंका इति- हास भी महान है। अब मुसलमान नेताओंको लीजिए । सर अब्दुर्रहीम ऐसा सोच सकते हैं कि हिन्दू लोग मुसलमानोंकी अपेक्षा हर मानेमें आगे बढ़े हुए हैं, वे समृद्ध हैं, वे शिक्षित हैं; और मुसलमान लोग गरीब हैं, अशिक्षित हैं। हमें इस बातकी छूट है कि हम सोचें और कहें कि उनके विचार गलत हैं, लेकिन उनकी जो राय है उसके लिए हम उन्हें गाली क्यों दें? अगर मौलाना मुहम्मद अली कहते हैं कि गांधीके लिए उनके मनमें आदर है, लेकिन उनके विचारसे " कुरान' में विश्वास करनेवाले किसी मुसलमानका धर्म गांधीके धर्मसे श्रेष्ठ है, तो हम गुस्सा क्यों हों ? क्या कुछ ईसाई पादरी ऐसा नहीं कहते कि नियमित रूपसे गिरजा जानेवाला एक ईसाई बड़ेसे-बड़े धर्मात्मा हिन्दुसे श्रेष्ठ है? इससे हम घट-बढ़ नहीं जाते। इसलिए मैं आपसे अपील करता हूँ कि यदि आप स्वामी श्रद्धानन्दजीकी स्मृतिका आदर करते हैं तो आप पारस्परिक घृणा और निदाके वातावरणको शुद्ध करें; आप उन अख- बारोंका बहिष्कार कराने में मदद दें जो घृणा भड़काते हैं और गलतफहमियाँ फैलाते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि आज ९० प्रतिशत अखबार बन्द हो जायें तो भारतका कोई नुकसान नहीं होगा। बहुतसे मुसलमान अखबार हिन्दुओंके खिलाफ घृणा फैलाने के आधारपर चलते हैं और बहुतसे हिन्दू अखबार मुसलमानों के खिलाफ घृणाके बलपर चलते हैं। स्वामीजी अपने रक्तसे लिखा गया एक मूल्यवान पाठ हमें दे गये हैं। 'क्या आपको आर्य समाजकी उदारताका पता है ? ' एक बार उन्होंने मुझसे पूछा था । क्या आप जानते हैं कि महर्षि दयानन्दने अपनेको विष देनेवाले मनुष्यको किस प्रकार क्षमा कर दिया था ? ' मैं यह बात जानता था। जब मैं जानता था कि महर्षिके सामने युधिष्ठिरका उदाहरण और 'गीता' तथा 'उपनिषदों' की शिक्षा थी तब मैं इससे अनभिज्ञ कैसे हो सकता था ? लेकिन श्रद्धानन्दजीने महर्षिके प्रति अगाध श्रद्धापूरित शब्दोंमें उनकी क्षमाशीलताका विवरण विस्तारसे सुनाया। मैं आपको बताता हूँ कि इस शिष्यमें अपने महान गुरुकी तुलनामें क्षमाशीलताका यह गुण कम नहीं था । 'शुद्धि' के फलितार्थीके बारेमें चर्चा करते हुए उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि उनके शुद्धि आन्दोलन में मुसलमानों के प्रति कोई दुर्भाव नहीं है। शुद्धिका अर्थ आत्मशुद्धि तथा महान हिन्दू जातिकी शुद्धि है। 'गीता' का यह वचन कि "सभी प्राणियोंमें अपना ही स्वरूप देखो" उनका आदर्श था लेकिन उन्होंने इस बातपर जोर दिया कि मुसल- मान मेरे लेखे जितने घनिष्ठ हैं, हिन्दू उससे कम नहीं हैं; और हिन्दुओंकी सेवा करना मेरा कर्त्तव्य है। भले ही सारा मुसलमान समाज मेरे विरुद्ध हो जाये, लेकिन मैं डंकेकी चोट कहूँगा कि मालवीयजी मेरे मित्र और बड़े भाई हैं। इस साँसमें मैं यह भी कहता हूँ कि कोई भी मुसलमान नेता हिन्दू धर्मका शत्रु नहीं है। सर अब्दुर्रहीम हिन्दुओंके शत्रु नहीं हैं, और न मियाँ फज्ले हुसेन ही उनके शत्रु हैं; मिलनेपर उन्होंने