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प्रस्ताव और भाषण : कांग्रेस अधिवेशन, गौहाटीमें

मुझे विश्वास दिलाया था कि वे एक पुराने कांग्रेसी हैं; वे हिन्दुओंको मुसलमानोंसे कम प्यार नहीं करते, लेकिन एक मुसलमानके नाते वे मुसलमानोंकी सेवा करना चाहते हैं। हम उनके विचारोंसे असहमत हो सकते हैं, मुसलमानोंके लिए रखी गई उनकी मांगोंको हम नापसन्द कर सकते हैं, लेकिन केवल इसी कारण हम उन्हें गाली क्यों दें, या उन्हें हिन्दुओंका शत्रु क्यों बतायें ? क्यों न हम सत्याग्रहियोंकी भाँति उनके विचारोंसे अपनी असहमति प्रकट करें और जरूरी हो तो उन विचारोंकी मुखा- लफत करें, ठीक वैसे ही जैसे अनेक प्रश्नोंपर में मालवीयजीको मुखालफत करता हूँ ? इसलिए में जितने जोरसे कह सकता हूँ, उतना जोर देकर फिर कहता हूँ कि सर अब्दुर्रहीम या श्री जिन्ना या अलीबन्धु हिन्दुओंके शत्रु नहीं हैं। हमें स्वामी श्रद्धानन्दकी मृत्युसे मिला सबक भुला नहीं देना चाहिए। आप सब खड़े होकर अभी यह प्रस्ताव स्वीकार करेंगे, लेकिन इस समय भी शायद दिल्लीमें हिन्दू-मुस्लिम दंगे जारी हैं। फिर भी मैं आपसे कहता हूँ कि स्वामी श्रद्धानन्दजी हमारे लिए जो पाठ छोड़ गये हैं उसे आप सब समझें और हृदयंगम कर लें तो हमारे लिए कुछ ही समयमें स्वराज्य प्राप्त कर लेना फिर सम्भव हो जायेगा। आप कहेंगे कि यह एक पागल आदमी है जो बड़े-बड़े वादे करनेका आदी है। लेकिन मैं आपको बताता हूँ कि मैं पागल नहीं हूँ, मैं अब भी अपने कार्यक्रममें उतनी ही ईमानदारीसे विश्वास करता हूँ जितना कि १९२० में करता था। लेकिन जिन लोगोंने १९२० में प्रतिज्ञाएँ की थीं उन्होंने प्रतिज्ञाएँ तोड़ दीं और उस समय स्वराज्य प्राप्तिको असम्भव बना दिया। हम सब उसी पिताकी सन्तान हैं जिसे हिन्दू, मुसलमान और ईसाई अलग-अलग नामसे जानते हैं। शंकरने ईश्वरमें अपनी आस्था 'एकमेवाद्वितीयं' कहकर व्यक्त की, रामा- नुजने उसीको द्वैतवादमें व्यक्त किया और मुहम्मदने 'ला इल्लाह इल्लिल्लाह' कहकर व्यक्त किया; किन्तु इससे फर्क क्या पड़ता है ? इन तीनोंका तात्पर्य एक ही चीजसे था। अगर हम अपने हृदयोंको स्वच्छ बना सकें तो देखेंगे कि स्वामीजीने मरकर भी हमारी वैसी ही सेवा की है जैसी जीवित रहते हुए की। आइए, हम उनके खूनसे अपने हृदयोंको धो डालें और, अगर जरूरत हो तो, अपने अधिकारोंके लिए शांति और सत्याग्रहके तरीकोंसे लड़ें। हर मुसलमान भी यह समझ ले कि स्वामी श्रद्धानन्दजी मुसलमानोंके शत्रु नहीं थे, उनका जीवन सर्वथा शुद्ध और निष्कलंक था और वे हम सभीके लिए शांतिका पाठ अपने खूनसे लिखकर छोड़ गये हैं।

अब आप शायद समझ जायेंगे कि मैंने अब्दुल रशीदको भाई क्यों कहा है, और में उसे दोहराता हूँ। मैं तो उसे स्वामीजीकी हत्याका अपराधी भी नहीं सम- झता । वास्तवमें अपराधी तो वे सब हैं जिन्होंने एक दूसरेके विरुद्ध घृणाकी भावना भड़काई । हम हिन्दुओंके लिए 'गीता' का आदेश है कि हम समानताका भाव रखें, हमें एक विद्वान ब्राह्मणके प्रति भी वैसे ही भाव रखने चाहिए जैसे किसी चाण्डाल, कुत्ते, गाय या हाथीके प्रति ।

यह शोक करने या आँसू बहानेका अवसर नहीं है। यह वह अवसर है जब हमारे हृदयमें वीरताका अमिट पाठ लिखा जाना चाहिए । वीरता केवल क्षत्रियोंका