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पत्र : आश्रमकी बहनोंको

सम्मेलनमें भाग लेनेवालोंके ऊपर वह अपनी कृपाकी वर्षा करे ताकि इस देवी कृपाके प्रभावसे यह सम्मेलन दक्षिण आफ्रिकाके प्रवासी भारतीयोंको न्याय प्रदान कर सके ।

इसके बाद गांधीजीने श्रोताओंका ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचा कि दक्षिण आफ्रिकामें हमारे देशवासी जिस अस्पृश्यताके शिकार हैं, वह भारतकी अस्पृश्यताको प्रतिक्रिया ही है। इसलिए उचित यही है कि आप पहले अपने घरकी हालत सुधारें।

उन्होंने दक्षिण आफ्रिकी राजनीतिज्ञोंको याद दिलाया कि जो शक्तिशाली लोग अपनी शक्तिका दुरुपयोग करते हैं, वे अपने ही विनाशकी तैयारी करते हैं। उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि भारतीय प्रवासी जो सामान्य बुनियादी न्याय चाहते हैं, उन्हें वह प्रदान किया जाये। भारतीय प्रवासी किसी प्रकारको कृपा नहीं चाहते; बल्कि सच तो यह है कि शुद्ध न्यायको दृष्टिसे जिन चीजोंकी उन्हें जरूरत नहीं थी, उसे उन्होंने शांतिके विचारसे माँगा ही नहीं है ।

[ अंग्रेजीसे ]

रिपोर्ट ऑफ द इंडियन नेशनल कांग्रेस, फॉर्टी-फर्स्ट सेशन, गौहाटी (असम), १९२६, पृष्ठ ५१-२

१८१. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

गौहाटी
 
सोमवार, २७ दिसम्बर, १९२६
 

बहनो,

डाक बन्द होनेके वक्त शुरू कर आज तुम्हारा पत्र सवेरे शुरू करनेके बजाय रहा हूँ। यहाँ डाक जल्दी बन्द होती है।

यहाँका दृश्य बहुत सुन्दर है। ठेठ ब्रह्मपुत्रके किनारे हमारी झोंपड़ी बनाई गई है। काकासाहबका जी तो झोंपड़ी देखकर ही उसमें रहनेको हो जाये । ऊपर घासका छप्पर है। यहींके बाँसकी पट्टियोंकी दीवार है। उसे मिट्टीसे लीप दिया है और अन्दर सब जगह आसमानी रंगकी खादीसे सजाया गया है। भीतर खाट नहीं है, मगर यह कहा जा सकता है कि बाँसके पायोंवाला एक तख्त बनाया है। उसपर घास बिछा दी है, उसके ऊपर जाजम और जाजमपर खादी । इसी तख्तपर मैं बैठता हूँ, खाता हूँ और सोता हूँ। वह इतना बड़ा है कि उसपर चार आदमी और सो सकते हैं । मगर दूसरा कोई नहीं सोता। जमीनपर भी घास बिछाकर उसपर जाजम और उसके ऊपर खादी बिछा दी है। ऐसी झोंपड़ी में रहना किसे पसन्द नहीं होगा ? हाँ, यह सही है कि इस झोंपड़ीकी आयु बहुत थोड़ी है। बरसातमें यह निकम्मी है। मगर इसमें खर्च बहुत कम होता है। बनानेमें दो-एक दिन लगते होंगे और बहुत कुशलताकी जरूरत भी नहीं रहती। सभी कलाओंका यही हाल है। वे हमेशा सादी और स्वाभाविक होती हैं।