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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(हर्ष-ध्वनि) । स्वतन्त्रता शब्दमें जो प्रभाव है, उसे आप कम न करें। उसकी परिभाषाको सीमित न करें। कौन जाने, कोई व्यक्ति हमें उसकी इससे भी अच्छी परिभाषा दे दे। यह एक अपरिभाषित शब्द है, और मैं कहूँगा कि इसकी परिभाषा की ही नहीं जा सकती। और इससे इस शब्दकी शक्ति बढ़ जाती है ।

भारतकी देशी रियासतोंसे सम्बन्धित मसलोंपर कांग्रेस विचार न करे, इस निश्चयके प्रकाशमें महात्मा गांधीने नाभा रियासतके सवालपर गोपनीय रूपमें एक वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि इस सवालको फिरसे उठाया जाना चाहिए। उनकी यह भी राय थी कि मुद्राका सवाल जन-साधारणके लिहाजसे बहुत महत्वपूर्ण है और उन्होंने इस बातपर आश्चर्य व्यक्त किया कि कल रात विषय समितिने बिना पूरी तरह विचार किये ही सवालको रद कर दिया था ।

[ अंग्रेजीसे ]

सर्चलाइट, २-१-१९२७


१८५. भाषण : कांग्रेस अधिवेशन,गौहाटीमें

२८ दिसम्बर, १९२६
 

महात्मा गांधीने श्री बनर्जीको उनके कथनके लिए बधाई दी। उन्होंने कहा, इस देश में हजारों महात्मा हैं, आपको उनकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। इन महात्माओंके चंगुलसे निकल आना ही बेहतर है (हँसी) ।

लेकिन मैं कोई महात्मा नहीं हूँ। मैं देशका एक विनम्र सेवक हूँ और आप मेरे चंगुलसे आसानीसे नहीं छूट सकते (हँसी) । आत्म-बलिदानका माद्दा रखने के मामलेमें चूंकि मैं किसी उग्र अराजकतावादीसे अपनेको कम नहीं मानता, इसलिए मैं बड़ेसे-बड़े क्रान्तिकारी कार्यक्रमसे कभी नहीं डरता। लेकिन मैं चाहूँगा कि आप उस आदमीकी बातपर विचार करें और तौलें, जिसने अपने जीवनमें कई संघर्ष देखे हैं और जो जानता है कि क्रांतिकारी आन्दोलन किस तरह चलाये जाते हैं। यदि आज आप 'स्वराज्य शब्दकी व्याख्या करते हैं, तो इससे आप सिर्फ उसकी शक्तिको सीमित ही करेंगे। मैं कहूँगा कि 'स्वराज्य' शब्दमें पूर्ण स्वतन्त्रता शामिल है। इसमें एक ऐसी चीज भी शामिल है जो आज आपके आत्म-सम्मानको नागवार है। मैं कहता हूँ कि इसमें अंग्रेज लोगोंके साथ पूरी बराबरीके स्तरपर घनिष्ठ सम्बन्ध रखना तो सम्मिलित है ही। जिन लोगोंको जलियाँवाला बागके अत्याचारके कारण और सुधारोंके लागू होनेके बाद भी जो-कुछ होता रहा है, उसके कारण [ अंग्रेजोंसे ] कोई सम्बन्ध रखना असह्य है,

१. गांधीजीके बाद मोतीलाल नेहरू और साम्बमूर्तिने भाषण दिया।

२. स्वतन्त्रता प्रस्तावके ऊपर गांधीजी दूसरी बार बोल रहे थे।

३. उपेन्द्रनाथ बनर्जीने अपने भाषण में कहा था कि प्रस्तावके खिलाफ यह कोई दलील नहीं हो सकती कि गांधीजी उस प्रस्तावके विरुद्ध हैं।