पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/४९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



४६८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मयं

सत्यका पूर्ण पालन करें और अपने चरित्रको शुद्ध रखें। कार्यकर्त्ताओंकी सच्चाई, सच्चरि- त्रता और त्यागवृत्ति ही इसका एकमात्र बल है और जिस आन्दोलनको यह मिल जाये उसे किसी दूसरी सहायताकी जरूरत नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३०-१२-१९२६

१८९. शहीद श्रद्धानन्दजी'

जिसकी आशंका थी वही हुआ । कोई छ: महीने हुए स्वामी श्रद्धानन्दजी सत्या- ग्रहाश्रममें आकर दो-एक दिन ठहरे थे । बातचीतमें उन्होंने मुझसे कहा था कि उनके पास जब-तब ऐसे पत्र आया करते थे जिनमें उन्हें मार डालनेकी धमकी दी जाती थी । ऐसा कौन-सा सुधारक है, लोग जिसकी जानके गाहक नहीं हुए? इसलिए उनके लिए ऐसे पत्र पाने में अचम्भेकी कोई बात नहीं थी और उनका मारा जाना कोई अनहोनी नहीं है ।

स्वामीजी सुधारक थे। वे कर्मवीर थे, वचनवीर नहीं। जिस बात में उनका विश्वास था, वे उसका पालन करते थे । उन विश्वासोंके लिए उन्हें कष्ट झेलने पड़े । वे वीरताके अवतार थे । खतरेके सामने वे कभी काँपे नहीं । वे योद्धा थे और योद्धा रोग-शथ्यापर नहीं मरना चाहता। वह तो युद्ध भूमिमें मरना चाहता है ।

कोई एक महीना हुआ, स्वामी श्रद्धानन्दजी बहुत बीमार पड़े । डाक्टर अन्सारी उनकी चिकित्सा करते थे । जितने प्रेमसे सम्भव था, डाक्टर अन्सारी उनकी सेवा करते थे। इस महीने के शुरूमें मेरे पूछनेपर उनके पुत्र इन्द्रने तार दिया था कि स्वामीजी अब अच्छे हैं और मेरे प्रेम तथा शुभकामनाके आकांक्षी हैं। मैं तो उनके बिना माँगे ही उन्हें अपना प्रेम देता रहता था और भगवान से उनके लिए प्रार्थना करता रहता था ।

भगवानको उन्हें शहीदकी मौत देनी थी। इसलिए रोग-शय्यापर रहते हुए ही वे उस हत्यारेके हाथ मारे गये जो इस्लामपर धार्मिक चर्चाके नामपर उनसे मिलना चाहता था। उसे स्वामीजीकी आज्ञासे अन्दर आने दिया गया। उसने प्यास मिटाने- को पानी माँगने के बहाने स्वामीजीके ईमानदार नौकर धर्मसिंहको पानी लेनेको बाहर भेज दिया, और फिर नौकरके चले जानेपर बिस्तरपर पड़े हुए रोगीकी छाती में दो प्राणघातक चोटें कीं । स्वामीजीके अन्तिम शब्दोंकी हमें खबर नहीं। फिर भी अगर मैं उन्हें थोड़ा भी पहचानता था तो मुझे इसमें बिलकुल सन्देह नहीं है कि उन्होंने अपने परमात्मासे उस हत्यारेके लिए, जो यह नहीं जानता था कि वह कोई पाप कर रहा है, क्षमायाचना की होगी। इसलिए 'गीता' की भाषामें 'वह योद्धा धन्य है, जिसे ऐसी मृत्यु प्राप्त होती है । '

१. यह पत्र-व्यवहार उपलब्ध नहीं है ।