पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/४९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६९
शहीद श्रद्धानन्दजी

मृत्यु तो हमेशा ही धन्य होती है, मगर उस योद्धाके लिए तो और भी अधिक, जो अपने धर्म यानी सत्यके लिए मरता है । मृत्यु कोई शैतान नहीं है। वह तो सबसे बड़ी मित्र है। वह हमें कष्टोंसे मुक्ति देती है। हमारी इच्छाके विरुद्ध भी हमें छुटकारा देती है। वह हमें बराबर ही नई आशाएँ, नये अवसर प्रदान करती है। वह नींदके समान मीठी है, जो हमें फिर ताजा कर देती है। किन्तु तो भी किसी मित्रके मरनेपर शोक करनेका रिवाज है। लेकिन जब कोई शहीद मरता है तो यह रिवाज बेमानी हो जाता है। अतएव इस मृत्युपर मैं शोक नहीं कर सकता। स्वामीजी और उनके परिवारके लोग ईष्यक पात्र हैं क्योंकि श्रद्धानन्दजी मर जानेपर भी जी रहे हैं। वह हमारे बीच अपने विशाल शरीरको लेकर घूमा करते थे, आज उससे भी अधिक सच्चे अर्थमें वह जी रहे हैं। जिस कुलमें उनका जन्म हुआ था, जिस जातिके वह थे, वे सभी उनकी ऐसी महिमामय मृत्युके लिए बधाईके पात्र हैं। वह वीर पुरुष थे। उन्होंने वीरगति पाई ।

मगर इस घटनाका एक दूसरा पहलू भी है। मैं अपनेको मुसलमानोंका मित्र समझता हूँ। वे मेरे सगे भाई हैं। उनकी भूलें मेरी भूलें हैं। उनके सुखसे में सुखी और दुःखसे दुखी होता हूँ । किसी मुसलमानके पापसे मुझे उतना ही दुःख होता है जितना किसी हिन्दूके पापसे होता है। एक नामधारी मुसलमानने यह घोर कृत्य किया है। मुसलमानोंके मित्रकी हैसियतसे मुझे इसका बहुत अधिक खेद है । शहीदकी मृत्युपर होनेवाली खुशी कम इसलिए हो गई कि उसका कारण हमारा एक भटका हुआ भाई ही है। इसलिए शहादतकी कामना कभी नहीं करनी चाहिए। वह तो आनन्दकी वस्तु तभी बनती है जब बिना बुलाये आ जाये । हम अपने छोटेसे-छोटे भाईकी भूलपर भी न हँसें ।

मगर सच तो यह है कि जबतक कोई भूल भयंकर रूप धारण नहीं कर लेती, उसे भूल माना ही नहीं जाता और जबतक उसकी यथेष्ट निन्दा नहीं हो लेती तबतक उसका परिमार्जन नहीं होता।

इस दुखद काण्डका राष्ट्रीय महत्त्व है। यह हमारा ध्यान उस बुराईकी ओर खींचता है जो राष्ट्रके जीवनको ही नष्ट करता जा रहा है। हिन्दू और मुसलमान, दोनोंको ही अपना कर्त्तव्य चुन लेना चाहिए। हम दोनों ही इस समय कसौटीपर चढ़े हैं।

क्रोध दिखलाकर हिन्दू अपने धर्मको कलंकित करेंगे और उस एकताको दूर कर देंगे जिसे एक दिन अवश्य ही आना है। आत्मसंयमके द्वारा वे स्वयंको अपने उपनिषदों और क्षमामूर्ति युधिष्ठिरके योग्य सिद्ध कर सकते हैं। एक व्यक्तिके पापको हम सारी जातिका पाप न मान बैठें। हम अपने मनमें बदला लेनेकी भावना न रखें। इसे हम एक हिन्दूके प्रति एक मुसलमानका पाप माननेके बदले एक वीर पुरुषके प्रति एक भूले-भटके भाईकी भूल मानें ।

मुसलमानोंको अग्नि-परीक्षामेंसे होकर निकलना पड़ेगा। इसमें कोई शक नहीं कि छुरी और पिस्तौल चलाने में उनके हाथ जरूरत से ज्यादा साफ हैं। तलवार वैसे