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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानी अछूतोंकी कानूनी अयोग्यताएँ बढ़ती ही गई हैं। ब्रिटिश साम्राज्यके और हिस्सोंमें भी यह रोग फैलता जा रहा है, जैसा कि पिछले सप्ताह प्रकाशित केनियासे आये पत्रसे साफ मालूम पड़ता है।

इन्हीं बढ़ती हुई बुराइयोंके विरुद्ध दक्षिण आफ्रिकामें एन्ड्रयूज लगभग अकेले ही लोहा लिये हुए हैं। आइए, हम आशा करें कि उनकी मेहनत सफल होगी।

किन्तु बेशक इस बुराईका सामना करनेका सबसे अच्छा तरीका है कि हम हिन्दुस्तानमें पहले उससे मुक्त हो जायें। दक्षिण आफ्रिका संघके प्रतिनिधियोंके मुंहसे यह बात अनेक बार सुनने में आई थी कि पहले हम अपने यहाँ अछूतोंपर लगे निषेध तो हटाएँ और तभी दक्षिण आफ्रिकामें भी निषेधोंके विरुद्ध आन्दोलन करना ठीक होगा। शायद वे भूल गये थे, या उन्हें मालूम ही नहीं था कि यहाँ हम लोगोंमें, अछूतोंके ऊपर कोई कानूनी निषेध नहीं है। मगर दूसरोंसे न्याय माँगते समय इस तरह की दलील पेश करना हमें शोभेगा नहीं। कानूनका एक बहुत अच्छा सिद्धान्त है जो हमारे मामलेपर लागू होता है । 'जो दूसरोंसे न्यायकी चाह रखते हैं, उन्हें आप बेदाग होना चाहिए।' इसलिए दक्षिण आफ्रिकाकी अस्पृश्यताके विरुद्ध जो सबसे अच्छी दलील हम तैयार कर सकते हैं, वह है, पहले अपने ऐबको दूर कर लेना। तबतकके लिए, जो कुछ राहत हमें गोलमेज सम्मेलन दिला सके, उसीसे हमें सन्तोष करना पड़ेगा।

इस सवालका एक और दूसरा पहलू भी है। अछूतोंका भी स्वयं अपने प्रति और भारतके प्रति कोई कर्त्तव्य है। किन्तु इस दूसरे पहलूका विचार मैं किसी दूसरे ही लेखमें करूँगा।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३०-१२-१९२६

१९१. टिप्पणियाँ

सर हबीबुल्लाका शिष्टमण्डल

श्री सी० एफ० एन्ड्रयूजने तार दिया है :

अच्छा हो कि शिष्टमण्डल फरवरीतक ठहरे ताकि प्रान्तीय चुनाव समाप्त हो जायें और वातावरण शान्त हो जाये ।

मुझे आशा है कि लार्ड इविनके लिए श्री एन्ड्रयूजकी सलाहको मानना और शिष्टमण्डलको चुनाव समाप्त होनेतक दक्षिण आफ्रिकामें रुकनेकी अनुमति देना सम्भव होगा। हर स्थानकी तरह दक्षिण आफ्रिकामें भी चुनावोंमें लोगोंमें सर्वोत्तम भावनाएँ नहीं, बल्कि निकृष्टतम रोष और द्वेषकी भावनाएँ उभरती हैं। इसमें सन्देह नहीं है

१. देखिए परिशिष्ट ३ ।

२. दक्षिण आफ्रिका संघके संसदीप प्रतिनिधि मण्डलके सदस्य, जो भारत सरकारके निमन्त्रणपर एफ० डब्ल्यू० बेपसेके नेतृत्वमे १८ सितम्बर, १९२६ को तीन सप्ताहको पात्रापर भारत आये थे।