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कि शिष्टमण्डल वहाँ रहेगा तो उसके प्रभावसे इन भावनाओंपर कुछ अंकुश रहेगा। किन्तु दक्षिण आफ्रिकाकी दृष्टिसे देखा जाये तो शिष्टमण्डलको चुनाव आरम्भ होनेसे पहले ही भारत भेज देनेका यही सबसे बड़ा कारण हो सकता है । शिष्टमण्डलके वहाँ रहनेसे उम्मीदवारोंको खुलकर भाषण देनेमें अवश्य ही संकोच होगा और इससे उनपर एक अंकुश लगेगा; फलतः उन्हें उसकी उपस्थितिपर आपत्ति हो सकती है।

कष्टसे मुक्ति देनेवाली हत्या " ?

एक आदरणीय पत्र-लेखकने, जिसके पत्रको पढ़कर मैंने “सर्वभूतहिताय "" ('यंग इंडिया', ९-१२-१९२६) शीर्षक लेख लिखा था, मुझे अब यह लिखा है :

तीन मामलोंमें से आपने केवल एक डाक्टर ब्लेजरके मामलेको चर्चाकी है और पेरिसके मामलेमें और डेन्मार्कके कानूनके मामलेके गुणावगुणपर आपने कोई सम्मति प्रकट नहीं की है। यदि आप हमें यह बतायेंगे कि इन दोनों सामलोंमें अपने नैतिक दृष्टिकोणसे आपका निर्णय क्या है तो मैं तथा आपके पत्रके अन्य दूसरे पाठक निश्चय ही कृतज्ञ होंगे।

जिन मामलोंका उल्लेख किया गया है वे ये हैं :

पिछले साल लगभग इन्हीं दिनोंमें मुझे ऐसा याद आता है कि मैंने पेरिसकी एक घटना पढ़ी थी। एक अभिनेत्रीने अपने प्रेमीको उसके ही निरन्तर अनुरोधपर गोलीसे मार डाला था, क्योंकि उसका प्रेमी एक रोगसे घोर कष्ट पा रहा था और उसे स्वस्थ होनेकी कोई आशा नहीं थी। अभिनेत्रीपर नर-हत्याका मुकदमा चलाया गया; लेकिन असेसरके इस फैसलेपर वह छोड़ दी गई कि जिन हालतोंमें यह हत्या की गई है उनमें ऐसा करना अपराध नहीं है। फ्रांस में ऐसा कोई कानून नहीं है जिससे यह फैसला उचित ठहरता हो । किन्तु मैंने पढ़ा है कि डेन्मार्कमें एक ऐसा कानून बनाया गया है जिसमें किसी मनुष्यको 'कष्टसे मुक्त करनेके लिए मारना' कुछ विशेष अधिकार प्राप्त लोगों- के लिए अपराध नहीं है।

मेरी रायमें इस तरहकी हत्या यदि नेकनीयतीसे की जाये तो वह निश्चय ही मेरी परिभाषा और समझके अनुसार हिंसा नहीं मानी जायेगी; किन्तु किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा किये गये ऐसे कार्यको उचित ठहरानेकी जिम्मेदारी में अपने ऊपर नहीं ले सकता क्योंकि मेरे पास ऐसे किसी मामलेका फैसला कर सकने लायक पर्याप्त प्रमाण आदि नहीं होंगे। इस मामले में अपराधीके बचावका सवाल पूरी तरह उसकी नीयतपर आधारित होगा और चूंकि नीयतके बारेमें निर्भ्रम निर्णय ईश्वर ही कर सकता है, इसलिए हरएक आदमीको अपनी जिम्मेदारी समझकर ही काम करना चाहिए और जो भी परिणाम हों उन्हें भुगतना चाहिए। इसलिए इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि डेन्मार्कमें बनाये गये कानूनका समर्थन नहीं किया जा सकता । और मेरी रायमें तो केवल इस आधारपर किसीकी हत्या करनेको, कि मृत व्यक्ति मरना चाहता था,

१. देखिए. पृष्ठ ३९४-९६ ।