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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उचित ठहराना बहुत ही खतरनाक काम है। ऐसे बहुतसे मामले हैं जिनमें कोई व्यक्ति असह्य पीड़ासे घबराकर कह सकता है कि इस पीड़ाको सहने से बेहतर है कि मुझे मार दिया जाये। लेकिन अच्छा हो जानेपर वह व्यक्ति भगवानका शुक्रिया अदा करेगा कि भला हुआ उसकी इच्छा पूरी नहीं की गई । मेरी सम्मतिमें अधिक अच्छा यह होगा कि जिस व्यक्तिके बारेमें हम पक्की तौरपर जान लें कि वह जीवित नहीं बचेगा उसका हमें साहसपूर्वक अन्त कर देना चाहिए। ऐसा एक उदाहरण युद्ध-क्षेत्रमें घातक रूपसे घायल सैनिकका है जिसको चिकित्साकी सुविधा प्राप्त होने की कोई सम्भावना न हो। ऐसी हालत में उसकी हत्याका आधार उस घायल सैनिककी स्वयं मार दिये जाने की इच्छा नहीं होगी, बल्कि यह निश्चित जानकारी होगी कि बिलकुल बेसहारा हालतमें उसे तिल-तिल करके मरना पड़ेगा; खासकर जब उस घायल सैनिकको प्रेमपूर्ण शुश्रूषा प्राप्त हो सकनेकी भी कोई उम्मीद नहीं है। इसमें यह मान लिया गया है कि जो सैनिक उसकी हत्या करेगा वह इस स्थितिमें भी नहीं है कि अपने घायल साथीकी शुश्रूषा कर सके ।

बुरे विचारोंका दमन

इन्हीं स्तंभोंमें प्रकाशित "अनीतिकी राहपर" शीर्षक लेख-मालामें जो विचार दिये गये हैं, उनके समर्थनमें एक सज्जनने एक लेख भेजा है। इसमें कोई नई बात तो नहीं है, मगर इसमें भगवान बुद्धकी शिक्षाओंमें से एक उद्धरण दिया गया है, जिससे उन लोगोंको सहायता मिल सकती है जो बुरे विचारोंका दमन करना चाहते हैं। वह उद्धरण इस प्रकार है :

अगर मनकी किसी स्थितिके कारण, किसी भाईमें बुभुक्षा घृणा, अनैक्य सम्बन्धी बुरे विचार उठें, तो उसे अपने मनको दूसरी उचित बातमें लगाना चाहिए। अगर तब भी बुरे विचार उठते ही रहें तो उसे पढ़ना चाहिए कि इन बुरे विचारोंके क्या खतरे हैं। और इसपर ध्यान देना चाहिए कि इस प्रकारके विचार कितने बुरे हैं और किस प्रकारसे बुरा फल लाते हैं। अगर उठते ही रहें तो उसे उनकी उपेक्षा करनी चाहिए और अपने मनको उनपर जाने ही न देना चाहिए। अगर वे तब भी उठते ही रहें तो उसे सोचना चाहिए कि किस प्रकार इस ढंगके विचारोंको दबाया जा सकता है। ऐसा करते ही ये विचार निकल जायेंगे, गायब हो जायेंगे। उसका चित्त दृढ़ और एकाग्र हो जायेगा । अन्तमें, लाख दबानेपर भी यदि ये विचार आते ही रहें तो उसे दाँतले दाँत भिड़ाकर और तालूमें जीभ लगाकर केवल विचार-बलसे अपने चित्तका दमन करना चाहिए, उसे अपने वशमें बलात् लाकर, अपने शासनके अधीन करना चाहिए। ऐसे करते हो ये विचार गुजर जायेंगे, गायब हो जायेंगे । वह केवल ऐसे विचारोंको ही सोचेगा, जिन्हें वह सोचना चाहता है, न कि उन्हें, जिन्हें वह सोचना ही नहीं चाहता।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३०-१२-१९२६