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१९२. भाषण : कलकत्ताको सार्वजनिक सभामें'

३१ दिसम्बर, १९२६
 

उपस्थित लोगोंके सामने हिन्दीमें बोलते हुए महात्माजीने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द-जैसी मृत्यु मिलना कोई सरल बात नहीं है। किसी साधारण मनुष्यको ऐसी मृत्यु नहीं मिलती। वीर पुरुष साधारण पुरुषों जैसी मृत्यु नहीं पाते । हिन्दू- धर्मको खातिर अपने प्राण उत्सर्ग करनेके कारण स्वामीजी अमर रहेंगे । हम सब यहाँ स्वर्गीय स्वामीजीकी स्मृतिका तर्पण करनेके लिए एकत्र हुए हैं। एक स्मारक कोष खोला गया है। मुझे आशा है कि हर आदमी इसमें अपनी सामर्थ्यके अनुसार चन्दा देगा। स्मारक कोषके लिए दस लाख रुपये जमा करनेका विचार किया गया है। इसमें से आधा रुपया अस्पृश्यता निवारणके कार्यमें और शेष आधा रुपया शुद्धि और संगठनके ऊपर खर्च होगा। स्वामीजीने हिन्दू धर्मके लिए बहुत कुछ किया है। वे प्रमुख धार्मिक कार्यकर्ताओं में से एक थे। महात्माजीने कहा, अस्पृश्यता निवारणके प्रश्नपर मेरा स्वामीजीसे कोई मतभेद नहीं था। सच्ची बात तो यह है कि स्वर्गीय स्वामीजी अस्पृश्योंके लिए ही जिये, और यदि आप उनकी स्मृतिका उचित सम्मान करना चाहते हैं तो ऐसा आप स्वामीजीके जीवन-अनुष्ठानको अपनाकर ही कर सकते हैं।

शुद्धि और संगठनपर बोलते हुए महात्माजीने कहा कि स्वामीजीका यह अनुष्ठान उचित मार्गपर आधारित था । प्रत्येक धर्मको यह वैध अधिकार है कि वह लोगोंको अपने कोडमें ले और अपनेको संगठित करे, लेकिन तभीतक जबतक इसका आधार पशुबल न हो । स्वामी श्रद्धानन्द बलात् धर्म परिवर्तनके पक्षमें कभी नहीं थे; और में दावेसे यह कहता हूँ कि में स्वामीजीको भलीभाँति जानता था ।

[ अंग्रेजीसे ]

अमृतबाजार पत्रिका, १-१-१९२७

१. पह सभा बड़ाबाजार स्थित माहेश्वरी भवनमें स्वर्गीय स्वामी श्रद्धानन्दको श्रद्धांजलि अर्पित करने और शुद्धि तथा संगठन कार्यों के लिए धन एकत्रित करनेके लिए हुई थी। इस सभामें पण्डित मदनमोहन मालवीयने भी भाषण किया था।