२०१. पत्र : प्रभाशंकर पट्टणीको
सुज्ञ भाईश्री ,
आपका पत्र मिला । आपका वजन इतना ज्यादा कम है कि तबीयत पूरी तरहसे सुधरी हुई नहीं कही जा सकती। आबूमें भी स्वास्थ्यमें कोई भारी सुधार हुआ नहीं लगता । शायद त्रापज जानेकी मेरी शर्तको आपने बहुत ही निर्बल स्वरसे स्वी- कार किया है। ऐसी स्वीकारोक्तिसे में आनेके लिए ललचानेवाला व्यक्ति नहीं हूँ। यहाँका मौसम अभी ऐसा नहीं है कि कोई बीमार व्यक्ति यहाँ आनेके लिए ललचाये । अभी तो दोपहरकी उमस बहुत ज्यादा है। बादल घिरे हुए हैं और बरसात हो नहीं रही है। ऐसी हालतमें तो भले-चंगे व्यक्ति भी बीमार पड़ जायें । आप सपरिवार पंचगनी जाकर क्यों नहीं रहते? आप पंचगनी जाकर दो दिन रह आयें, ऐसी मेरी इच्छा है।
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३२०१) की फोटो-नकलसे ।
सौजन्य : महेश पट्टणी
२०२. प्रार्थना-प्रवचन
गोविन्द, द्वारिकावासिन्, कृष्ण, गोपीजनप्रिय ।
कौरवैः परिभूतां मां कि न जानासि केशव ॥
नाथ, हे रमानाथ, व्रजनाथातिनाशन ।
कौरवार्णवमग्नां माम् उद्धरस्व जनार्दन ॥
कृष्ण, कृष्ण, महायोगिन्, विश्वात्मन्, विश्वभावन ।
प्रपन्नां पाहि गोविन्द, कुरुमध्येऽवसीदतीम् ॥
१. पत्रमें प्रभाशंकर पट्टणीकी बीमारी और त्रापज जाकर रहनेकी चर्चासे लगता है कि यह पत्र इसी वर्ष लिखा गया होगा।
२. गांधीजीने १९२६ में आश्रमकी स्त्रिको प्रातः ७ बजेकी प्रार्थना सभाओं में जो प्रवचन दिये थे उनकी मणिबहन पटेल द्वारा ली गई टीप
३. इस प्रार्थना सभाके लिए निर्धारित प्रार्थनाके पहले तीन श्लोक।
३२-३१