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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरा आदर्श यह है कि पुरुष, पुरुष रहते हुए स्त्री बने तथा स्त्री, स्त्री रहते हुए पुरुष बने । पुरुषको स्त्री बनना चाहिए अर्थात् उसमें स्त्रियोंकी नम्रता और विवेक होना चाहिए और स्त्रीको पुरुष बनना चाहिए, इसका अर्थ यह है कि उसे भीरुता- को छोड़ हिम्मतवाली और बहादुर बनना चाहिए ।

ऐसा कहा जाता है कि स्त्रियोंमें ईर्ष्या-भाव बहुत होता है। लेकिन पुरुषोंमें ईर्ष्या होती ही नहीं, ऐसी बात नहीं है। उसी तरह सभी स्त्रियाँ भी ईर्ष्यालु नहीं होतीं। बात सिर्फ इतनी ही है कि चूंकि स्त्रियोंको २४ घंटे घरमें रहना पड़ता है, इसलिए उनकी ईर्ष्या अधिक स्पष्ट रूपसे दिखाई देती है।

तुम्हें शिक्षा देते हुए मेरे धीरजकी कोई सीमा नहीं होगी। उसका अन्त तुम्हारी जिज्ञासाके अन्तके साथ ही होगा ।

पुरुष और स्त्री दोनों निर्भय बन सकते हैं। पुरुष [प्रायः ] ऐसा मानता है कि वह निर्भय रह सकता है; लेकिन यह बात हमेशा सच नहीं होती। और इसी तरह स्त्रियाँ भी अपनेको निर्बल मानकर अपने लिए 'अबला' नाम चलने देती हैं - यह बात भी ठीक नहीं है। स्त्रियोंको भयभीत रहनेको तनिक भी आवश्यकता नहीं है। मैंने अभी परसों ही मीराबाईके सम्बन्धमें एक बात सुनी है। इसे मैं तुम्हें बताता हूँ। मीराबाई वृन्दावन गईं और वहाँ उन्होंने एक साधुका दरवाजा खटखटाया। साधुने कहा कि मैं किसी स्त्रीका मुँह नहीं देखता। मीराबाईने पूछा कि तुम कौन हो ? मैं तो मात्र एक ही पुरुषको जानती हूँ और वह है ईश्वर । यह सुनकर साधुने अपना दरवाजा खोल दिया और मीराबाईको साष्टांग नमस्कार करके कहा, आज मेरी आँखें खुल गई हैं। मैं अन्धकूपमें से निकल आया हूँ ।

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स्त्री और पुरुष दोनों जबतक विकारके वशीभूत हैं तबतक दोनोंको भय है । द्रौपदीने उतना ही बल दिखाया जितना युधिष्ठिरने दिखाया था।

द्रौपदी पाँच पतियोंसे विवाह के बावजूद भी सती कही जाती है। उसे सती कहा जाता है इसका कारण यह है कि उस युगमें जिस तरह एक पुरुष कई स्त्रियोंसे विवाह कर सकता था उसी तरह [ प्रदेश-विशेषमें ] स्त्रियाँ भी एकसे अधिक पुरुषोंसे विवाह कर सकती थीं। विवाह-सम्बन्धी नीति युग-युगमें [ और देश-देशमें] बदलती रहती है।

[ दूसरी तरहसे देखते हुए ] द्रौपदी बुद्धिका रूपक है और पाँच पाण्डव उसकी वशीभूत पाँच इन्द्रियाँ हैं। इन्द्रियाँ वशीभूत हो जायें यह तो एक अच्छी बात ही है। पाँच इन्द्रियाँ बुद्धिके वशीभूत हो गईं और इस तरह उनका परिष्कार हुआ, इसी बातको यों कहा जा सकता है कि बुद्धिने उनका वरण कर लिया।

द्रौपदीने अगाध बलका परिचय दिया। भीम भी द्रौपदीसे डरता था । युधिष्ठिर धर्मराज थे, वे भी उससे डरते थे ।