पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/५१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८५
प्रार्थना-प्रवचन

करते, और न किसीकी निन्दा ही करते हैं। इसका नाम ही सत्याग्रह है। हमें भयभीत नहीं होना चाहिए। यह बात हमारी बुद्धिमें पैठ जाये, इतना ही पर्याप्त नहीं, हमें हृदयसे ऐसा महसूस करना चाहिए। भय-त्यागका मतलब यह नहीं कि हम जगतकी परवाह न करें ।

मेरा कोई नहीं है, इस विचारका हमें त्याग करना चाहिए। सबका आधार ईश्वर ही है। आज स्त्रियोंकी जो स्थिति है उसपर विचार करते हुए उनके पतियोंको दोषी ठहराया जा सकता है। लेकिन स्त्रियोंको तो यही विचार करना है कि वे स्वयं अपनी निर्बलताको कैसे निकाल बाहर करें ।

जगतमें प्रार्थना एक ही हो सकती है। यदि हम यह प्रार्थना नित्य करेंगे और विवेकपूर्वक करेंगे तो यह हमारे मनमें पैठ जायेगी। केशव तो हमारे पास ही हैं। वे द्वारिकामें रहते हैं, ऐसी बात नहीं। यह तो कविकी भाषा है। द्रौपदी भूल गई कि केशव उसके पास हैं। लेकिन कृष्ण तो वहाँ उसके पास बैठे-बैठे उसके चीरको बढ़ाते रहे। हमारे मनमें भी दुर्वासनाएँ उठती हैं, दुष्ट विचार आते हैं। उस समय हमारे मनमें यह विचार उठना चाहिए कि हमारे मनमें ऐसे विचार क्यों आते हैं ? उस समय हमें इस श्लोकका पाठ करना चाहिए ।

यह पुस्तक केवल राजनीतिकी पुस्तक नहीं है। इसमें मैंने राजनीतिके बहाने धर्मकी कुछ झाँकी दिखानेकी चेष्टा की है। हिन्द-स्वराज्यका अर्थ क्या है ? धर्मराज्य अथवा रामराज्य। मैंने पुरुषोंकी जितनी सभाओंमें भाषण दिये हैं उतनी ही स्त्रियों की सभाओंमें भी दिये हैं। उनमें मैंने स्वराज्य शब्दका नहीं, अपितु रामराज्य शब्दका प्रयोग किया है ।

यह पुस्तक मेरे अनेक वर्षोंके चिन्तनका दोहन है। जिस तरह मनुष्य तब बोलता है जब उससे बोले बिना नहीं रहा जाता, उसी तरह जब मुझसे नहीं रहा गया तब मैंने इसे लिखा। यह पुस्तक विशेष रूपसे अनपढ़ लोगोंके लिए लिखी गई है।

हमें माता-पिताके चारित्र्यकी जो विरासत प्राप्त होती है वही सच्ची विरासत है। यह आध्यात्मिक विरासत कहलाती है। इसमें वृद्धि करना हमारा धर्म है। पिता एक लाख रुपया छोड़ गया हो और पुत्र उसके दस लाख बनाये तथा कहे कि पिताने कैसे केवल एक लाख रुपये ही इकट्ठे किये, जबकि में इतना चतुर हूँ कि मैंने दस लाख रुपये इकट्ठे कर लिये तो ऐसा कहनेवाला पुत्र कुपुत्र कहलायेगा; क्योंकि उसके इस कथनमें अभिमान है। हमें तो माता-पिताकी सम्पत्तिकी विरासतमें वृद्धि नहीं करनी है, अपितु उनके चारित्र्यकी विरासत में वृद्धि करनी है, तथापि

१. हिन्द-स्वराज्य ।