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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमें अभिमान नहीं करना चाहिए। नम्रताके बिना आध्यात्मिक विरासत मिलती ही नहीं है।

जो कार्य हमने जन्मसे ही कभी न किया हो, जैसे हम लोग माँसादि नहीं खाते, उसे न करनेपर ऐसा नहीं कहा जा सकता कि हमने कोई त्याग किया। यह तो हमारे लिए स्वाभाविक ही था । इसमें हमने पुरुषार्थ नहीं किया ।

मनुष्यका सौन्दर्य उसके नैतिक आचरण में है। पशुकी सुन्दरता उसके शरीरसे आँकी जाती है। गायको देख हम कहते हैं कि इसकी चमड़ी देखो, इसके बाल देखो, इसके पैर देखो, इसके सींग देखो। लेकिन मनुष्यके बारेमें ऐसा नहीं कहा जाता कि यह मनुष्य साढ़े पाँच फुट ऊँचा है इसलिए यह सुन्दर है तथा यह दूसरा केवल साढ़े चार फुट ऊँचा है इसलिए यह असुन्दर है। जो साढ़े पाँच फुटसे एक इंच अधिक ऊँचा हो तो उसे ज्यादा सुन्दर नहीं कहा जा सकता । मनुष्यकी सुन्दरताका आधार तो उसका हृदय है, उसकी धन-सम्पत्ति नहीं। यहाँ आश्रममें हमने हृदयके गुणोंका विकास करनेको ही धर्म माना है। हम खाते-पीते हैं, ईंट-चूनेके मकान बनवाते हैं, लेकिन ऐसा हम विवश होकर करते हैं। हमने मिट्टीके मकानकी अवमानना नहीं की है। मिट्टीके मकानमें रहकर हम लज्जित नहीं होते। हम तो वैभवमें डूबे हुए हों तो शरमाते हैं। हम अपने वैभवमें वृद्धि करते हों तो हमें शर्मसे सिर झुका लेना चाहिए । हाँ, सेवाके लिए हमारे पास अवश्य धन हो सकता है। ऐसा धनका संग्रह हमें लाचारीसे करना पड़ता है; लेकिन कितने ही व्यक्ति तो अपने लोभको ही धर्म मानकर धनका संग्रह करते हैं। यह बात ठीक नहीं है। हम बाह्य प्रपंचका जितना प्रसार करते हैं आन्तरिक विकास उतना ही कम होता है, और इसलिए धर्मकी हानि होती है ।

बम्बईके बाजारमें हमारे व्यापारी करोड़ों रुपये कमाते हैं, इससे हमें खुश नहीं होना चाहिए। उसके कारण तो हमें रोना आना चाहिए, क्योंकि जहाँ बम्बईके व्या- पारी दलाली करके पाँच करोड़ रुपये कमाते हैं, वहीं अंग्रेजोंको ९५ करोड़ रुपया मिलता है। और वह भी हिन्दुस्तानमें से और गरीबोंका खून चूसकर । उसकी हमें खबर नहीं होती, क्योंकि आखिर ३३ करोड़ लोगोंके इतने बड़े राष्ट्रको चूसनेमें भी कुछ समय तो लगता है न ?

यदि श्रमिक अपना सारा काम ईश्वरार्पण बुद्धिसे करे तो उसे आत्मदर्शन हो सकता है। आत्मदर्शन अर्थात् आत्मशुद्धि । वस्तुतः देखा जाये तो आत्मदर्शन शारीरिक श्रम करनेवालेको ही होता है, क्योंकि 'निर्बलके बल राम' । निर्बल अर्थात् शरीरसे निर्बल नहीं, यद्यपि उसका भी बल राम ही है। यहाँ तो इसका अर्थ साधन-सम्पत्तिसे