पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/५१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८७
प्रार्थना-प्रवचन

निर्बल है । मजदूरमें नम्रता आनी चाहिए । केवल बुद्धिका विकास करनेका अर्थ है राक्षसी बुद्धिका विकास करना। इसलिए केवल बौद्धिक काम करते रहने से हममें आसुरी वृत्ति ही आ सकती है। इसीसे 'गीता' में कहा गया है कि श्रम किये बिना खाना चोरी करना है। श्रम नम्रताका भाव है, इसीलिए वह कर्मयोग है। लेकिन जो मनुष्य केवल निर्वाहके लिए श्रम करता है उसका श्रम कर्मयोग नहीं कहा जायेगा; क्योंकि वह तो केवल पैसेके लिए श्रम करता है। पैसेके लिए पाखाना साफ करना कोई यज्ञ नहीं है। लेकिन सेवार्थ, सफाईकी दृष्टिसे, दूसरोंका भला हो इस खयालसे पाखाना साफ करना यज्ञ कहा जायेगा । यदि कोई सेवाभावसे, नम्रतापूर्वक, आत्मदर्शनके लिए श्रम करता है तो उसे आत्मदर्शन होता है। ऐसा श्रम करने वाले- को आलस तो आना ही नहीं चाहिए। वह अतंद्रित होता है ।

चलनी सूपपर कैसे हँस सकती है, जबकि दोनोंमें लगभग एक जैसे दोष हैं ? उसी तरह पुरुष स्त्रीको क्या कह सकता है अथवा उसपर क्या कटाक्ष कर सकता है ? स्त्रियोंमें अनेक अन्धविश्वास, विकार और भय भरे हुए हैं। पुरुषोंमें भी ये सब मौजूद हैं। कितने ही शास्त्रियोंका कहना है कि स्त्रियोंको मोक्ष नहीं मिलता। लेकिन मेरे देखनेमें ऐसी बात नहीं आई है । वैष्णव सम्प्रदायमें तो यह कल्पना है कि मीराबाई जैसा कोई भक्त ही नहीं है। मुझे लगता है कि यदि मीराबाईको मोक्ष नहीं मिल सकता तो किसी भी पुरुषको नहीं मिल सकता ।

किसान खेतमें सोता है, तुम अथवा कोई अंग्रेज अधिकारी तो वहां क्या सोयेगा ? लेकिन उसकी चिन्ता कोई नहीं करता। उसके जीवनमें क्या आनन्द है ? उसे सवेरे उठकर खेतमें काम करना होता है, इसीलिए वह नहीं सोता है। कभी-कभी साँपके काट लेनेपर मर जाता है । लेकिन ऐसा जीवन किसान विवशतासे व्यतीत करता है। यदि इसे त्याग कहा भी जाये तो वह विवशतासे किया हुआ त्याग है। यदि उसे कोई रेलगाड़ीमें बिठाये तो वह उसमें नहीं बैठेगा, ऐसी बात नहीं है। वह तो उसमें झटसे बैठ जायेगा। लेकिन इन सबके पीछे यदि विवेक हो, ज्ञान हो तो उसका जीवन धन्य हो जाये । कितने ही ज्ञानी लोग किसानोंकी अथवा जड़भरतकी तरह जीवन बिताते हैं। वे ऐसा जानबूझकर करते हैं।

यदि मेरा मन मिट्टीकी मूर्तियोंकी पूजा करने से शान्ति प्राप्त करे तो मैं उनकी पूजा अवश्य करूँ। मेरा जीवन सार्थक होता हो तभी मेरा बालकृष्णकी मूर्तिकी पूजा करना ठीक है। पत्थर देवता नहीं है, किन्तु पत्थरमें देवताका वास है । यदि में मूर्तिपर चन्दन लगाकर चावल चढ़ाकर उससे यह कहूँ कि तू मुझे आज इतने लोगोंका सिर काटनेकी शक्ति दे तो तुममें से जो लड़की इस योग्य हो उसे चाहिए कि वह उस मूर्तिको उठाकर कुएँमें फेंक दे अथवा उसे तोड़कर चूर-चूर कर दे।