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प्रार्थना-प्रवचन

देहको रत्न चिन्तामणि कहा गया है। यदि हम ईश्वरपरायण रहें तो सच ही उसे रत्न चिन्तामणि बना सकते हैं। ईश्वरपरायण बननेके लिए इसका दमन भी करना चाहिए।

पुरुषको तो बाहर घूमना-फिरना होता है। उसे बाहरके काम-धन्धे रहते हैं इसलिए वह एकाएक गमगीन नहीं होता, लेकिन स्त्रीको घरमें ही रहना होता है, इसलिए वह एकान्तवासी बन जाती है और एकदम निराश और गमगीन हो जाती है। उसे बात करने के लिए यदि कोई दूसरी स्त्री मिलती है तो इतनी वाचाल हो जाती है कि क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं, इसका उसे तनिक भी विवेक नहीं रहता। घरमें ही बने रहने के कारण उसमें ऐसे अनेक दुर्गुण आ गये हैं। यद्यपि एक दृष्टिसे यह एकान्तवास स्पृहणीय । इसकी वजहसे कितने ही प्रलोभनोंसे दूर रहा जा सकता है। लेकिन इस एकान्तवासका लाभ तभी मिल सकता है यदि हम अन्तर्मुख हों, अन्तरको टटोलते हुए आत्मनिरीक्षण करना सीख जायें ।

कल्पना कीजिए कि एक ऐसी बहन है जिसे एक भी अक्षर नहीं आता है, वह ककहरा भी नहीं जानती। फिर भी वह अपने काममें मग्न रहती है। जो अपना न हो ऐसे घासके एक तिनकेको भी हाथ नहीं लगाती । स्वप्नमें भी चोरी नहीं करती। उससे पूछो कि 'भागवत' क्या है तो वह तुम्हारा मुँह ताकने लगेगी; लेकिन सबपर ऐसा प्रेमभाव रखती है मानो साक्षात् जगदम्बा हो ।

अब एक दूसरी स्त्रीकी कल्पना कीजिए जिसे सब-कुछ आता हो, जिसने उपनिषदोंको रट रखा हो, उच्चारण भी बहुत बढ़िया हो, लेकिन जो चोरी करती हो, झूठ बोलती हो, दूसरोंसे काम करवानेमें चतुर हो, जिसमें बत्तीसों लक्षण हों ।

इन दोनों में से अच्छी तो पहली ही है इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं, लेकिन यदि उसे लिखना-पढ़ना भी आता हो तो वह दूसरीसे विशेष रूपसे अच्छी है।

जिस ज्ञानमें नम्रता नहीं, कोमलता नहीं, उस ज्ञानका क्या उपयोग ? कौशिक मुनिपर जब पक्षीकी बीट पड़ी तो उन्होंने उसपर क्रोध किया। उससे पक्षी जलकर भस्म हो गया। अपने तपकी यह शक्ति देखकर मुनिके मनमें सहज ही अभिमान हो आया। बादमें वह एक सज्जनके यहाँ अतिथि बनकर पहुँचे । घरकी स्वामिनी उस समय अपने पतिकी सेवामें रत थी इसलिए उसने अतिथिको खड़ा रखा । पतिकी सेवा पूरी करनेके बाद वह खाना लेकर मुनिके पास गई और देरीका कारण बताया और क्षमा माँगी। इसपर मुनिको क्रोध हो आया तो उस महिलाने कहा, 'मैं वह चिड़िया नहीं हूँ कि तुम्हारे क्रोधसे जलकर भस्म हो जाऊँ। तुम्हारा इस तरह को करना ज्ञान नहीं है।' तब कौशिक मुनिको ज्ञान हुआ और उन्होंने उक्त महिलासे कहा, “तूने तो मुझे दो प्रकारका भोजन दिया; एक तो खाद्यान्न और दूसरा ज्ञानान्न । "]