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प्रार्थना-प्रवचन

हम चाहे 'गीता' पढ़ें, 'रामायण' पढ़ें, 'हिन्द-स्वराज्य' पढ़ें, लेकिन इन सबमें से हमें जो बात सीखनी है, वह तो परमार्थ ही है। बालकोंको भी हमें यही सिखाना है।

हमारे जिन पूर्वजोंने शराब छोड़ दी उन्होंने अवश्य ही भारी पुरुषार्थ और पुण्यका काम किया, लेकिन हम लोगोंने जिन्होंने उसे कभी पीया ही नहीं उन्हें तो इस विषयमें नकारात्मक पुण्य ही मिल सकता है। हमारे लिए तो इतना ही कहा जा सकता है कि हम शराब पीनेका पाप नहीं करते। हम जब शराबके समस्त अनिष्टोंको समझने लगें तभी यह कहा जायेगा कि हमने शराब सचमुच छोड़ दी है।

उसी तरह यदि हम अपने पुराने त्योहारों और व्रतोंका पालन बिना सोचे- समझे करते हैं तो उसका कोई अर्थ नहीं है। लेकिन यदि हम इसके रहस्यको समझें और औरोंको भी समझा सकें तभी हमें और समाजको उसका लाभ मिलेगा। हमारी बहनें नागपंचमी, जन्माष्टमी आदि त्योहार मनाती हैं, उन्हें इन त्योहारोंके मर्मको भी समझना चाहिए । नागपंचमीका अर्थ यह होगा कि नागको शत्रु माना और इसके बावजूद शत्रुको भी नहीं मारना चाहिए, इस भावनाका प्रचार करनेके लिए नाग- पंचमीका व्रत किया। इस संसार में नागके समान विषैला प्राणी और कोई नहीं है, यदि कोई है तो वह हम ही हैं। इस व्रतसे हमें यह सीखना है कि जिसे हम नागके समान विषैला मानते हैं उसे भी अमृतके समान मानें और उससे यह सीखें कि मनुष्य मात्र पूजा करने योग्य है अर्थात् सेवा करने योग्य है ।

यह संसार प्रेमके बन्धनसे बँधा हुआ है, इसीलिए वह चल रहा है। इतिहासमें एक दूसरेके प्रति प्रेमभाव रखनेके नित्यके प्रसंगोंकी चर्चा नहीं होती, उसमें झगड़ा फसाद और मारधाड़का ही वर्णन मिलता है। दुनियामें एक दूसरेके साथ प्रेम-व्यव- हारकी घटनाओंकी तुलनामें लड़ाई-झगड़ेकी घटनाएँ बहुत कम होती हैं। संसारमें हम इतने गाँवों और शहरोंको बसा हुआ देखते हैं। यदि संसारमें हमेशा लड़ाई ही होती रहती तो इन गाँवों और शहरोंका अस्तित्व ही न होता ।

जिन नियमोंसे धर्मकी हानि होती है उन नियमोंका लोप हम अवश्य कर दें। हम ऐसे नियमोंको नहीं मानें, इतना ही नहीं; उनका सक्रिय विरोध करें। विरोध करनेके दो मार्ग हैं। मारकाट करनेका और सत्याग्रह करनेका । हम तो सत्याग्रहका मार्ग ही ग्रहण करेंगे। हमें धर्म के नामपर हिंसा नहीं करनी है। हम तो धर्मके नाम- पर फाँसीपर चढ़ेंगे, मर मिटेंगे परन्तु औरोंकी हत्या नहीं करेंगे ।

स्त्रियोंको अपने शीलकी रक्षा किस तरह करनी चाहिए, यह प्रश्न अनेक बार पूछा जाता है और इस सम्बन्ध में उन्हें खंजर रखनेका सुझाव भी दिया जाता है। किन्तु यदि स्त्रियाँ खंजर रखने लगेंगी तो मुझे भय है कि उसका उपयोग उन्हींके