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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विरुद्ध हुआ करेगा। खंजरका प्रयोग करनेके लिए बहुत कठोरताकी आवश्यकता है। उसका प्रयोग करनेके लिए अपनी सारी जीवन पद्धति बदलनी होगी। जिस व्यक्तिने किसी दिन रक्त देखा ही न हो, बहाया न हो वह खंजरका उपयोग कर ही नहीं सकता। खंजर चलाना सीखनेके लिए शिकार करना चाहिए, भेड़-बकरियोंको मारने- काटनेकी तालीम लेनी चाहिए । किसीके शरीरमें खंजर भोंकनेके लिए हमें पहले अपने हृदयको इतना कठोर बनाना होगा ।

इसलिए स्त्रियोंको खंजर चलानेकी शिक्षा देनेके बजाय यह शिक्षा देनी चाहिए कि उन्हें किसीका भय रखनेका कोई कारण नहीं है। उनसे कहना चाहिए कि तुम्हारे ऊपर तो सदैव ईश्वरका वरद हस्त है। यदि हम सच्चे हृदयसे ईश्वरके अस्तित्वमें विश्वास करते हों तो हमें किसका भय हो सकता है ? कितना ही दुष्ट व्यक्ति तुमपर हमला करनेके लिए आये, उस समय तुम रामनाम लेना । अनेक दुष्ट व्यक्ति तो इस प्रकारसे ही भाग निकलेंगे। परन्तु कभी-कभी ऐसा न हो तो भी क्या ? उस समय हमें अपने प्राणोंको त्याग देना चाहिए। बालक मरनेके निकट पहुँच गया हो तब भी माता अपने प्राणोंको बाजीपर लगाकर अन्ततक उसकी सेवा करती है न ? और खूब सेवा करनेपर भी यदि बालक माँकी गोदमें खत्म हो जाये तो माँको इतना सन्तोष रहता है कि उससे जितना हो सका उतना उसने किया। प्राण देनेकी पूरी- पूरी तैयारी रखना हमारा धर्म है। कोई कितना ही दुष्ट क्यों न हो, यदि हम उसके बलात्कारके आगे आत्म-समर्पण नहीं करते और मर जाते हैं परन्तु वशमें नहीं आते तो उक्त दुष्ट व्यक्ति क्या कर सकता है ? सम्भव तो यह है कि मरनेकी पूरी तैयारी किए हुए पवित्र व्यक्तिके सम्मुख दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता ही छोड़ देगा। इसलिए सत्याग्रहसे दोहरा लाभ है। जो व्यक्ति सत्याग्रह करता है उसका तो भला होता ही है, परन्तु जिसके विरुद्ध सत्याग्रह किया जाता है, उसका भी भला होता है ।

[ गुजरातीसे ]

बापुना पत्रो: आश्रमनी बहेनोने