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२०३. पत्र: मणिबहन पटेलको

[१ जनवरी, १९२७ ]
 

चि० मणि,

तुम्हारा पत्र मिल गया। इस पत्रके पीछेका पत्र पढ़ना । इस कामके लिए तुम्हें भेजनेका विचार होता है। तुम या मीराबाई ही वहाँ काम कर सकती हो। वहाँ सिन्धी लड़कियाँ होंगी, इसलिए अंग्रेजी और हिन्दीकी जरूरत होगी। मीराबाईको अभी नहीं भेजा जा सकता। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम जाओ । यदि निश्चय हो जाये तो बताना ।

तुम्हें सुख-दुःख सहकर भी आश्रममें अर्थात् मेरे साथ ही रहना है। अपना अन्तर मेरे सामने उँडेलकर मुझसे 'माँ' का काम लेना ।

तुम्हारी नीरसताका कारण भीतर-ही-भीतर साथीका अभाव तो नहीं है न ? मुझे तुम्हारे एक हितैषीने आग्रहपूर्वक कहा है कि मुझे तुम्हारा विवाह कर ही देना चाहिए। यह बात एक युवकके सिलसिलेमें निकली। वह पाटीदार तो नहीं है, परन्तु योग्य है। मैंने कहा कि तुम्हारे बारेमें मैं तो निर्भय हूँ। तुम्हारी विवाहकी इच्छा होगी, यह अभी तो मैं नहीं देखता। तब उन्होंने कहा, आप मणिबहनको नहीं जानते।" इस समय में मजाक नहीं कर रहा हूँ, यह मेरी भाषासे ही तुम देख सकोगी। मुझे निर्भयतासे उत्तर देना। इतना तो निश्चित है कि जो कुमारी रहना चाहती है, उसे वीरांगना बनना चाहिए। उसे प्रफुल्लित रहना चाहिए। नहीं तो लोग कहेंगे, “इसकी शादी कर दो । ”


बापूके आशीर्वाद
 

चि० मणिबहन पटेल

सत्याग्रह आश्रम

साबरमती

[ गुजरातीसे ]

बापुना पत्रो: मणिबहन पटेलने

१. साधन-सूत्रके अनुसार।

२. कराचीके नारायणदास आनन्दजीने २०-१२-१९२६ को लिखे अपने पत्र में गांधीजीसे अनुरोध किया था कि वह कराची नगरपारिकाको कन्या पाठशालाओं में तकलो कातना सिखाने के लिए गुजरातसे किसी दक्ष महिलाको भेजें।