पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५
गोरक्षा

मखमल भी मिट्टीके मोल बेच सकता है। लेकिन वह व्यापारी जिसकी एकमात्र पूँजी उसकी मेहनत ही है, ऐसा करनेकी हिम्मत नहीं कर सकता। क्या एक बहुत ही सुन्दर, सुघड़ किन्तु बनावटी गुलाब और असमान पंखुड़ियोंवाले सच्चे गुलाबका कोई मुकाबला हो सकता है, या किसी जीवित व्यक्ति और मोमकी बनी उसकी मूरतमें कोई बराबरी हो सकती है? खद्दर जीवित वस्तु है; किन्तु सच्ची कलाको पहचाननेकी हिन्दुस्तानकी शक्ति ही खत्म हो गई है और इसलिए वह बाहरी चमक-दमकपर ही खुश है। खद्दरके प्रति स्वस्थ राष्ट्रीय रुचि पैदाकर दीजिए और फिर देखिए कि मधुमक्खियोंके छत्तेके समान हर गाँव कार्य व्यस्त नजर आने लगेगा। अभी तो खादी मण्डलोंको अपनी बहुत-सी शक्ति खादीके लिए बाजार तैयार करनेमें ही लगानी पड़ती है। आश्चर्य तो इस बातका है कि इतनी कठिनाइयोंके होते हुए भी यह आन्दोलन बढ़ता ही चला जा रहा है। अभी पिछले साल भरमें ही १२ लाख रुपयेसे अधिककी खादी बिकी थी। मगर अभी जितना कुछ करनेकी जरूरत है उसे देखते तो यह कुछ भी नहीं है।

इस प्रकार मैंने सहायक धन्धेके रूपमें करघेके मुकाबले चरखेके दावेको यहाँ संक्षेपमें प्रस्तुत किया है। किन्तु कोई विचार-विभ्रम न हो; में हाथकरघेका विरोधी नहीं हूँ। वह एक बहुत ही बड़ा और उन्नतिशील कुटीर उद्योग है। अगर चरखेको सफलता मिली तो यह आप ही आप उन्नति करेगा। अगर चरखा असफल रहा तो इसकी मृत्यु भी निश्चित है।

यदि कोई इन तर्कोंकी आलोचनामें कुछ कहे तो मैं उसे सुनूंगा। अगर कोई इन तर्कों या तथ्योंको गलत साबित कर सके तो मैं अपनी बात बखुशी वापस ले लूंगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ११-११-१९२६

१३. गोरक्षा

एक सज्जन लिखते हैं :

अधिकांश हिन्दुओंका यह महसूस करना कि गोरक्षा हर हालतमें की जानी चाहिए, स्वाभाविक ही है; मैं भी ऐसा ही मानता हूँ। जिन जिलोंको अकाल पीड़ित घोषित कर दिया गया था मैंने उनमें भूखों मरती कलोर गायोंकी दुर्दशा देखी थी। वहाँ वे मुसलमान चमड़के व्यापारियोंके हाथ झुंडकी-झुंड बेच डाली जाती थीं।

मालूम होता है कि हिन्दू-धर्मके अनुयायियोंका गोरक्षाका फर्ज केवल उनके ग्रन्थोंतक ही सीमित है। में इसके तत्त्वको समझने की कोशिश करता आया हूँ। जन्म से लेकर मरणोपरान्त तक लगातार फायदेमन्द होनेके कारण अगर