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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चौड़े देश में फैले हुए ७००,००० गाँवों में आबाद ३० करोड़ लोगोंको परस्पर जोड़ सकता है ? ऐसा कौन-सा काम है जिसे भारतका हरएक ग्रामीण, स्त्री-पुरुष और बालक, हिन्दू और मुसलमान कर सकता है और उससे लाभ उठा सकता है तथा इसके साथ- साथ समस्त भारतकी भी उन्नति कर सकता है ? इसका एकमात्र और असन्दिग्ध उत्तर है चरखा और खद्दर । यदि हम लोग चाहें तो खादीका सन्देश दूर-दूरतकके गाँवोंमें पहुँच सकता है। भारतके करोड़ों ग्रामीण, जो बिलकुल निर्धन हो गये हैं, जो विदेशियोंके पैरों तले ही नहीं, बल्कि आपके और मेरे पैरों तले भी कुचले जाकर धूलमें मिल गये हैं, चरखा चला सकते हैं। हम शहरोंमें रहनेवाले लोग इन करोड़ों ग्रामीणों की पैदा की हुई सम्पत्तिसे और उनके श्रमसे अपना निर्वाह कर रहे हैं; हम अमेरिकियों या अंग्रेजोंकी तरह एशियाई जातियोंके या संसारकी कथित दुर्बल जातियोंके शोषणपर जीवित नहीं रहते। यदि ये लोग भी भारत, चीन, आफ्रिका और संसारके अन्य भागोंका शोषण न कर सकते तो इनको भी चरखेका या ऐसे ही किसी अन्य साधनका आश्रय लेनेके लिए बाध्य होना पड़ता । हम उनका शोषण नहीं करते, क्योंकि हम में उनका शोषण करनेकी सामर्थ्य नहीं है; अभी हमें मजबूरन् यह नेकी बरतनी पड़ रही है। किन्तु मुझे आशा है कि ऐसा समय आ रहा है जब हम अपने हृदयकी उदारताके कारण, एक व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोणके कारण अपने ही मनकी प्रेरणासे किसी राष्ट्रका, फिर वह चाहे जितना कमजोर क्यों न हो, शोषण करना बुरा मानेंगे। मुझे आशा है कि हम लोग अपने जीवनकाल में ही स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेंगे और जब हम उसे प्राप्त कर लेंगे तो हम संसारकी समस्त जातियोंसे कहेंगे कि उन्हें हमसे डरने की जरूरत नहीं है; क्योंकि हम संसारकी तथाकथित सभ्य जातियोंसे सदा डरते रहे हैं। सम्भव है, आज आप मेरी बातपर विश्वास न करें। आप चाहें तो मुझे पागल कह सकते हैं। किन्तु वह समय आ रहा है जब आप कहेंगे कि बूढ़ा ठीक ही कहता था, और यदि भारतके शहरोंमें नहीं, बल्कि गाँवों समृद्धि लानी है तो भारतकी समृद्धि और स्वतन्त्रताका एक मात्र साधन चरखा ही है।

आपने गौहाटीमें जो दृश्य देखा उसका कारण यही है। मैं इसकी आशा नहीं करता था और बहुत चाहनेपर भी मैंने उसकी मांग नहीं की थी। किन्तु आपने गौहाटी में यह असाधारण दृश्य देखा कि कांग्रेसने खादीके आधारपर अपने मताधिकारमें संशोधन किया। मैं जानता हूँ कि इस प्रश्नपर काफी विवाद था। किन्तु में यह भी जानता हूँ कि मताधिकारमें जो यह सुधार किया गया, वह जन- साधारणकी इच्छाके आगे मजबूर होकर किया गया। नेताओंने यह सुधार इसलिए किया कि उन्होंने यह देख लिया कि ग्रामीणोंके हृदयतक केवल खादीके जरिये ही पहुँचा जा सकता है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि स्वराज्यवादी चुनावोंमें खद्दरके कारण ही जीते । शायद आप न जानते हों या जानते भी हों कि मद्रासमें जो लोग खद्दरके विरोधी थे उनको भी मतदाताओंसे अपील करते वक्त खादीको अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ा था और ज्यों-ज्यों दिन बीतते जायेंगे त्यों-त्यों आप देखेंगे कि खादी- का महत्त्व बढ़ रहा है, क्योंकि खादीमें अपने सहज गुण हैं, क्योंकि राष्ट्रके किसी भी