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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कोमिल्ला गया था, तब मैंने वहाँके दो गाँव देखे थे । इन गांवों में ज्यादातर तथा- कथित अछूत लोग ही रहते हैं। यदि लोग मुझे न बताते तो मैं यह समझ ही नहीं सकता था कि जिन लोगोंको मैं देख रहा हूँ, वे अछूत हैं। मुझे उनमें और पास खड़े दूसरे लोगोंमें कोई अन्तर दिखाई नहीं दिया। वे ऐसे ही खाते-पीते और अनुभव करते हैं, जैसे हम। अगर हम लोग उनके गुण-दोषों और उनकी असुविधाओंका खयाल करें और उनकी तुलना अपने गुण-दोषों और अपनी सुविधाओंसे करें तो निश्चय ही हम पायेंगे कि ईश्वरके खाते में हमारी बुराइयोंका लेखा उनकी बुराइयोंके लेखेसे ज्यादा बड़ा होगा। इसलिए हमें धरतीपर किसी भी मनुष्यको अस्पृश्य न मानना चाहिए। हमें दक्षिण आफ्रिकासे भी यही शिक्षा मिली है। वहाँ ईश्वर हमसे बिलकुल ठीक बदला ले रहा है। हम अपने भाइयोंके साथ जैसा व्यवहार यहाँ कर रहे हैं, वैसा ही व्यवहार हमारे सगे-सम्बन्धियोंके साथ दक्षिण आफ्रिकामें किया जा रहा है। वहां हमारे साथ पंचमों और भंगियोंके जैसा बरताव हो रहा है। हम अपने इस पापको जिस क्षण धो डालेंगे, हम इस अस्पृश्यताके अभिशापसे जिस क्षण मुक्त हो जायेंगे, आप देखेंगे कि दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए हमारे देशवासियोंके बन्धन उसी क्षण टूट जायेंगे ।

मैं हिन्दू-मुस्लिम एकताकी समस्याको छेड़नेका साहस नहीं करता। यह मनुष्य के हाथोंसे निकल गई है और इसका उपाय अब केवल ईश्वरके हाथोंमें है। जैसे द्रौपदीको उसके पतियोंने, मनुष्योंने और देवताओंने त्याग दिया था और उसने केवल ईश्वरसे ही सहायताकी प्रार्थना की थी और ईश्वरने उसको सहायता दी थी, वैसी ही दशा मेरी है; हममें से हरएकको ऐसा ही सोचना चाहिए। हमें सर्वशक्तिमान ईश्वरसे ही सहायता माँगनी चाहिए और उसीसे कहना चाहिए कि उसकी सृष्टिके हम तुच्छ प्राणी अपने कर्तव्यका पालन नहीं कर सके हैं। हम एक-दूसरेसे घृणा करते हैं, हम एक-दूसरेका अविश्वास करते हैं, हम एक-दूसरेका गला पकड़ते हैं और एक-दूसरेकी हत्या भी कर देते हैं। हमें उसी प्रभुसे हार्दिक पुकार करनी चाहिए कि वह हमारे हृदयोंसे इस घृणाको दूर करके उन्हें शुद्ध बनाये । हम एक-दूसरेका अविश्वास करके और एक-दूसरेसे डरकर उसकी इस पृथ्वीको, उसके नामको और इस पवित्र देशको बदनाम कर रहे हैं। यद्यपि हम इसी मातृभूमिको सन्तान हैं, इसीका अन्न खाते हैं, फिर भी हमारे मनोंमें एक-दूसरेके लिए गुंजाइश नहीं है। हमें ईश्वरसे पूर्ण विनम्रताके साथ प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें समझ और ज्ञान दे ।

आपने मेरी बात बहुत ध्यानसे सुनी है। मैंने भी आपको वही चीज दी जो मैं प्रसन्न-भावसे श्रोताओंको नहीं देता अर्थात् मैंने अंग्रेजीमें भाषण दिया और सो भी किसी हदतक लम्बा भाषण दिया। अब मैं आपसे इसका प्रतिदान माँगता हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप कल अभय आश्रममें आयें और उसके गोदाममें जितनी खादी हो, उस सबको खरीदकर गोदाम खाली कर दें। मैं तभी समझँगा कि आपने मेरा सन्देश, भारतके गरीबोंका सन्देश अच्छी तरह समझा है। वहाँ आप गरीबोंके लिए और खुद आपके लिए काम करते हुए कुछ कार्यकर्त्ताओंको देखेंगे। ये लोग आपके और गाँवके लोगों के