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भाषण : कोमिल्लाकी सार्वजनिक सभामें

बीचकी कड़ी हैं। ये अपनी शक्ति-भर मातृभूमिकी सेवा करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। मैं चाहता हूँ कि आप अपनी जेबोंमें हाथ डालें और जो-कुछ आपके पास हो वह मुझे दे दें। किन्तु आप जितना दे सकते हैं और जितना देना चाहते हैं, उतना ही दें। आप शर्मके कारण या आप सभामें हैं, इस संकोचमें आकर और मेरे दबावसे कुछ न दें। आप मेरे ऊपर कृपा दिखाने के लिए या मेरे प्रेमके कारण भी कुछ न दें। यदि आप मुझे अपना प्रेम देंगे तो मैं उसका उपयोग दूसरे काम के लिए करूंगा। किन्तु मैं चाहता हूँ कि आप जो-कुछ दे सकते हैं और जो-कुछ आपके पास है, वह गरीबोंके लिए दें, उन लोगोंके लिए दें जिन्हें दिनमें एक वक्त भी पूरा खाना नहीं मिलता। यदि आपको यह सन्तोष हो कि इस संस्थाका काम ठीक तरहसे, योग्यतासे और त्याग- भावसे किया जा रहा है, यदि आपको यह विश्वास हो कि खादी पहनना पाप नहीं है और अपने देशके भूखे मरते हुए लोगोंके हाथोंसे कते हुए सूतकी खादी पहनना अनुचित नहीं है, बल्कि उचित और आवश्यक है तो आप अपना रुपया, पैसा और सोना, जो भी आपके पास हो मुझे दें ।

यदि आपको इस सम्बन्धमें कोई सन्देह हो, इस मामलेमें आपको शंकाएँ हों तो मैं आपसे कहता हूँ कि आप अपना हाथ रोक लें और मुझे एक पाई भी न दें। आपका मन इस सन्देशको आज नहीं तो भविष्यमें कभी जरूर स्वीकार करेगा । और अगर आपको विश्वास हो कि यह ठीक काम है, किन्तु कदाचित् आपमें इस सन्देशको पूरी तरह अंजाम देनेकी शक्ति न हो, तो आप इस महान्, वास्तवमें महानतम् राष्ट्रीय उद्योगको अपनी सहायता दें, क्योंकि भारतके गाँवोंमें उद्योगोंका प्रचार चरखेसे जितनी अच्छी तरह हो सकता है उतनी अच्छी तरह अन्य किसी उपायसे नहीं हो सकता। उन करोड़ों भारतीयोंके लिए, जो वर्षमें कमसे-कम चार महीने बेकार रहते हैं, जो पूरे भोजनके अभाबमें भूखसे तड़प रहे हैं और जिनके लिए प्रतिदिन एक आनेकी आय भी वरदान है, चरखेसे अच्छा या अधिक कारगर, बल्कि मैं तो कहूँगा कि उसकी बराबरीका भी उपाय आजतक कोई व्यक्ति नहीं सुझा सका है। मैं आपसे उन्हींके लिए प्रार्थना करता हूँ। ईश्वर इस सीधे-सादे सन्देशको समझने में आपकी सहायता करे ।

आपको याद होगा कि जब मैं पिछली बार बंगाल आया था तब मैंने अखिल- बंगाल देशबन्धु स्मारकके लिए धन इकट्ठा किया था। वह धन अब जिसे सेवासदन कहते हैं उसके लिए था। मैंने तब यह घोषित किया था कि समय आनेपर में अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारकके लिए भी धन इकट्ठा करूंगा। आप जानते हैं कि उसका उद्देश्य चरखेके सन्देशका प्रचार करना है। इस प्रकार यदि आप खादीके लिए धन देंगे तो उसका मतलब होगा कि आपने स्मारकके लिए ही घन दिया ।

[ अंग्रेजीसे ]

अमृतबाजार पत्रिका, ७-१-१९२७

यंग इंडिया, १३-१-१९२७


१. देखिए खण्ड २७, पृष्ठ २८७-८८।