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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपनी इज्जतकी रक्षा करने योग्य बनना चाहिए। इस बारेमें उन्होंने मुझसे कहा था कि मेरे विषयमें बड़ी गलतफहमी फैली हुई है। मेरे विरुद्ध कही जानेवाली कई बातोंमें मैं बिलकुल निर्दोष हूँ। मेरे पास धमकीके कितने ही पत्र आया करते हैं। मित्रगण उन्हें अकेले चलने से मना करते थे। मगर यह परम आस्तिक पुरुष उनको यह जवाब दिया करता था: “ईश्वरकी रक्षाके सिवा मैं और किसकी रक्षाका भरोसा करूँ ? उसकी आज्ञाके बिना एक तिनका भी नहीं हिलता। मैं जानता हूँ कि जबतक इस देहके द्वारा वह मुझसे सेवा लेना चाहता है, मेरा बाल भी बाँका नहीं हो सकता । "

आश्रम में रहते समय उन्होंने आश्रमकी पाठशालाके लड़के-लड़कियोंसे बातें की थीं । उनका कहना था कि हिन्दू धर्मकी सबसे बड़ी रक्षा आत्मशुद्धिसे ही, भीतरसे ही होगी। चरित्र और शरीरके गठनके लिए वे ब्रह्मचर्यपर बहुत जोर देते थे ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ६-१-१९२७

२१९. टिप्पणियाँ

श्रद्धानन्द स्मारक

यह उचित ही है कि हिन्दू महासभाकी ओरसे स्वर्गीय स्वामी श्रद्धानन्दजीकी स्मृतिको चिरस्थायी बनाने के लिए चन्देकी अपील की जाये। स्वामीजी संन्यास-धारणके बाद जिन कामोंके लिए जीते थे, हिन्दू महासभाने उन कार्योंको जारी रखने के लिए चन्दा इकट्ठा करनेका निश्चय किया है। इस निश्चयके लिए मैं उसे साधुवाद देता हूँ। वे काम हैं, अस्पृश्यता-निवारण, शुद्धि तथा संगठन । 'अस्पृश्यता' सम्बन्धी कार्य के लिए पाँच लाख रुपयेकी अपील की गई है और पाँच-पाँच लाख रुपयोंकी ही अपील शुद्धि और संगठनके लिए। जिसे साधारणतः शुद्धि समझा जाता है, उस अर्थमें शुद्धि-आन्दोलनकी आवश्यकतामें मेरा विश्वास अब भी नहीं है। पापियोंकी शुद्धि तो एक अनवरत आंतरिक किया है। जो न तो हिन्दू कहे जा सकते हैं और न मुसलमान ही, या जो हालमें ही विधर्मी करार कर दिये गये हैं मगर जो यह भी नहीं जानते कि धर्म-परिवर्तन कहते किसे हैं, और जो निश्चय रूपसे हिन्दू ही रहना चाहते हैं, ऐसे लोगोंकी शुद्धिका तरीका वास्तवमें धर्म परिवर्तन करना नहीं है, बल्कि प्रायश्चित्त है। शुद्धिका तीसरा पहलू है धर्म-परिवर्तन । बढ़ती हुई सहिष्णुता और ज्ञानके इस युगमें में इसकी जरूरत नहीं मानता। मैं धर्म-परिवर्तनका विरोधी हूँ, चाहे कोई उसे हिन्दुओंमें शुद्धि, मुसलमानोंमें तबलीग या ईसाइयोंमें धर्म परिवर्तन कहे। धर्म-परिवर्तन तो हृदयकी क्रिया है और उसे केवल भगवान् ही जान सकता है। उसे तो व्यक्तिपर ही छोड़ देना होगा। मगर धर्म-परिवर्तनपर अपने विचार व्यक्त करनेका यह स्थान नहीं है। जिनका इसमें विश्वास है उन्हें बिना किसी विरोधके अपने रास्ते चलनेका तबतक पूरा अधिकार है जबतक वे उचित सीमाओंके अन्दर रहते हैं, यानी जबतक धर्म-परिवर्तनके लिए जोर-