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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खादी-शिक्षा मण्डल अ० भा० चरखा संघकी कार्य समितिने खादी-शिक्षा मंडलमें डाक्टर प्रफुल्लचन्द्र घोषका नाम इस शर्तपर रखा था कि वे उसे मंजूर कर लें। किन्तु चूँकि वे अपने प्रधान कार्यालयसे कहीं बाहर गये थे और पत्र छपनेके समयतक उनकी मंजूरी नहीं आ सकी थी, इसलिए आखिरी घड़ीमें उनका नाम लौटा लिया गया था । डाक्टर घोषने अब वह पद स्वीकार कर लिया है। पाठकोंको यह जानकर खुशी होगी कि मण्डलको एक ऐसे पुरुषकी सहायता प्राप्त होगी जिसने खादी और चरखा शास्त्र का अध्ययन किया है, और जिसे उसका व्यावहारिक अनुभव है।

हाथ- कताईपर पुरस्कृत निबन्ध

हाथ-कताई और हाथ-बुनाईपर अखिल भारतीय चरखा संघने अपना पुरस्कृत निबन्ध प्रकाशित कर दिया है । यह निबन्ध प्राध्यापक एस० वी० पुणताम्बेकर और श्रीयुत एन० एस० वरदाचारीने लिखा है। मैं इस पुस्तककी ओर खादीके कार्यकर्त्ताओं और खादीके आलोचकोंका ध्यान आकर्षित करता हूँ। मोटे टाइपमें छपी यह पुस्तक २३५ पृष्ठोंकी है और उसका आकार अठपेजी है। उसमें खादीके कार्यकर्त्ताओंको ऐसी अनेक बातें मिलेंगी जिन्हें शायद वे पहलेसे नहीं जानते । पुस्तकमें चार अध्याय हैं। पहले अध्यायमें अंग्रेजोंके आने से पहले, भारतके कताई और बुनाई उद्योगोंका इतिहास दिया गया है। दूसरे अध्यायमें यह बताया गया है कि भारतका सबसे बड़ा सूत कातनेका राष्ट्रीय उद्योग किस तरहसे पूर्णतः और बुनाईका दूसरा बड़ा राष्ट्रीय उद्योग किस तरह लगभग नष्ट कर दिया गया। तीसरे अध्यायमें यह बताया गया है कि हाथ- कताई और हाथ-बुनाई उद्योगोंकी उन्नतिकी कितनी सम्भावना है; और साथ ही इस अध्यायमें प्रसंगवश कारखानोंके कताई और बुनाईके उद्योगोंकी तुलना हाथके कताई और बुनाईके उद्योगोंसे की गई है। चौथे अध्यायमें यह बताया गया है कि चरखेसे समस्त विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कैसे सम्भव है । लेखकोंने अपनी हर बातका समर्थन तथ्यों और अंकोंसे किया है।

पुस्तकका मूल्य एक रुपया है और वह अखिल भारतीय चरखा संघ, अहमदा- बादके दफ्तरसे अथवा श्री एस० गणेशन, करेंट थॉट प्रेस, ट्रिप्लीकेन, मद्राससे डाक- व्यय सहित एक रुपया दो आने भेजकर मँगवाई जा सकती है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ६-१-१९२७