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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वामी श्रद्धानन्दकी हत्याकी खबरसे सारी सभामें छाई हुई उदासी तो वहाँ थी ही, किन्तु वह इतनी दबी हुई थी कि बाहरसे मालूम नहीं पड़ती थी । प्रतिनिधियोंको मालूम था कि स्वामीजीने वीरगति पाई है, इसलिए यह समय रोनेका नहीं था, काम करनेका था और इसलिए कांग्रेसका कार्य ऐसे चलता रहा, मानो कुछ हुआ ही न हो । रीति-रस्मकी सभी बातें, अध्यक्षका नियमित जुलूसतक बिलकुल हटा दी गई थीं। अध्यक्षका अभिभाषण, उसमें जितने प्रश्नोंपर विचार किया गया है, उसके लिहाजसे काफी संक्षिप्त है। भाषणके आधे हिस्सेको, जिसमें कौंसिलोंका उल्लेख है और स्वराज्यवादी दलके रवैयेका समर्थन है, मैं छोड़े देता हूँ ।

रचनात्मक कार्यको समुचित महत्त्व दिया गया है। उसमें खद्दरको सबसे पहला स्थान मिला है। अध्यक्षको विश्वास है कि अ० भा० चरखा संघ एक राष्ट्रव्यापी श्रमिक संगठन बन जायेगा, और यह संगठन अगर पूरी तरह स्वराज्यका रूप न ले सके तो भी उसके कारण कमसे-कम उस दिशामें कुछ प्रगति तो होगी ही। अगर कांग्रेसका हर सदस्य और सदस्या अपना-अपना कर्त्तव्य पूरा करे तो यह सचमुच स्वराज्य भी साबित हो सकता है। श्रीयुत एस० श्रीनिवास आयंगारके शब्दोंमें :

चरखेमें लोगोंको धीरे-धीरे अपनी ओर खींच लेनेकी जो शक्ति है, उसके कारण उसने राष्ट्रके मनको इस हदतक प्रभावित किया है कि वह प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है; उसने हमारे स्त्री-पुरुषों को एक प्रदान की है।

जब खादीको लेकर कांग्रेसकी सदस्यताकी शर्तोंमें संशोधन पेश किया गया, तो बहुत जबर्दस्त विरोध रहनेपर भी उसके उत्साहपूर्वक स्वीकार किये जानेसे इस बातका काफी सबूत मिल गया । कोई आश्चर्य नहीं है कि अध्यक्षने यह विचार व्यक्त किया खद्दर हमारे स्वावलम्बन और सहनशक्ति, दोनोंका ही प्रतीक है " ।

दूसरा स्थान शराब-बन्दीको दिया गया है। अध्यक्ष द्वारा इस आरोपकी स्वीकृति कि पिछले दिनोंमें हम लोगोंने पूर्ण शराब-बन्दीपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, ठीक ही है। उनका कहना है,

अगर हम राष्ट्रभरमें पूर्ण शराब-बन्दीके पक्षमें लोकमत तैयार कर सकें तो इस आन्दोलनकी नैतिक गरिमा बहुत बढ़ जायेगी ।

वे कहते हैं :

पिछले छः वर्षोंमें एक भी ऐसा मन्त्री नहीं मिला है, और न शायद आगे मिलेगा जो पूर्ण शराब-बन्दीके लिए विधेयक लानेका साहस करे और उसके अस्वीकृत होने या पेश करने की अनुमति न मिलनेपर त्यागपत्र दे दे।

अगर हिन्दुस्तान-जैसे शराब-विरोधी देशमें ऐसे मन्त्री न मिल सकें जो देशको पूर्ण शराब-बन्दीका उसका उचित अधिकार दिलायें तो निश्चय ही कहीं कोई बहुत बड़ी खराबी है। यह तर्क भी, कि शराबपर रोक लगानेसे शराबीके व्यक्ति-स्वात- न्त्र्यपर धक्का लगता है, उतना ही दोषपूर्ण है जितना यह कहना कि चोरीके