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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोगोंकी आत्माओं में जमी होती हैं। टार्कुमाडा ' जैसे आततायियोंके समस्त अत्या- चार, लोगोंको टिकठीसे बाँधकर जला देने जैसी विभीषिका तथा सभी तरहके अत्याचार भी मनुष्यकी आत्माके ऊर्ध्वमुखी गुणोंको नष्ट नहीं कर पाये हैं। वर्तमान अथवा भावी सरकारसे हिन्दू-धर्मको न तो किसी प्रकारको शक्ति प्राप्त करने की जरूरत है और न इस्लामको। दोनों स्वराज्यसे बहुत ऊँचे हैं और स्वराज्यकी उनसे तुलना नहीं की जा सकती। हमारे हृदयोंमें धर्मका जो अंकुर है और जिससे प्रेरित होकर मनुष्यने ब्रह्माण्डकी ऐसी दिव्य व्याख्या की, जिससे व्यक्ति इहलोक में मार्ग-दर्शन और शान्ति पानेके तथा परलोकमें मोक्षके लिए अनुबद्ध बना रहता है, उसे कोई भी विदेशी अथवा देशी, लोकतन्त्री अथवा निरंकुश सरकार नष्ट नहीं कर सकती ।

उनके भाषणके अन्तिम तीन पृष्ठोंमें एकताकी बड़ी जोरदार अपील की गई है।

भारतमें केवल दो ही दल हो सकते हैं, एक सरकार और उसके अनुयायियोंका, जो स्वराज्य की प्राप्तिमें अड़ंगा डालता है, और दूसरा वह जो स्वराज्यके लिए प्रत्यक्ष रूपसे, निरन्तर लड़ता रहता है ।। • हम एक शक्तिमान जातिसे स्वतन्त्रता लेनेके लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस जातिके पास प्रशिक्षित कर्मचारी और असीम भौतिक साधन हैं। इस जातिसे किये जानेवाले महान् संघर्ष में मैं व्यक्तिगत मतपर आग्रह करनेके सिद्धान्तको निन्दा करता हूँ। कोई मार्ग विशेष स्वीकार करना समझदारीका काम है या नासमझीका काम, उस पर चलकर हम सफल होंगे या असफल होंगे, उससे स्वराज्य जल्दी मिलेगा या उसके मिलनेमें बाधा आयेगी, इन प्रश्नोंपर अपने व्यक्तिगत मत या निर्णय या भावनाको अपने अन्तःकरणका मामला बना लेना झूठा सिद्धान्त है । हमें अपने अन्तःकरणसे धर्म, नैतिकता, और सम्मान के प्रश्नोंपर निर्णय करना चाहिए, किन्तु देशका कामकाज चलानमें, जबतक कोई निर्णय धर्म-विरुद्ध, नीति-विरुद्ध अथवा असम्मानजनक न हो तबतक मेरी समझमें यह नहीं आता कि हम एक- दूसरे से मतभेद रखने के अधिकारपर आग्रह करते हुए स्वराज्यके लिए लड़ने- वाली संस्थामें आवश्यक अनुशासन कैसे कायम रख सकते हैं।

भाषणका अन्त भी उसी गहरी भावना और हार्दिक तथा प्रबल अनुरोधसे भरा हुआ है, जो उनके भाषण में सर्वत्र दिखाई पड़ता है। वे कहते हैं :

स्वराज्य बुद्धिका मामला नहीं है, बल्कि भावनाका मामला है। हमें इस भावनाको अपने हृदयोंमें अटूट श्रद्धाके साथ कायम रखना चाहिए।... हममें स्वराज्यके लिए ऐसा अगाध उत्साह होना चाहिए जो भ्रमोंसे और

१. टॉमस टार्कुमाडा (१४२०-१४९८ ); स्पेनका इनक्विज़िटर-जनरल, जिसके बारेमें कहा जाता है कि उसके आदेश से १०,००० लोगोंको टिकठीमें बाँधकर आगमें जिन्दा जला दिया गया था।