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भेंट : 'फ्री प्रेस ऑफ इंडिया' के प्रतिनिधिसे

क्षणिक भावावेशोंसे विचलित न हो, जो संगठित लोक समुदायोंकी एक-सी और तेज सामूहिक प्रगतिका कायल हो, जिसपर बाधाओंका कोई प्रभाव न हो, जिसमें समयके प्रभावसे उतार-चढ़ाव न हो और जो न तो जेल-यात्राओं- से दबाया जा सकेगा और न असफलताओंके कारण पराभूत ही होगा।

मुझे आशा करनी चाहिए कि उनका यह अनुरोध हम सबके हृदयोंमें गुंजित होगा ।

प्रस्तावोंकी विस्तृत जाँच करने की जरूरत नहीं है। शोक-प्रस्तावोंके अतिरिक्त कौंसिल-सम्बन्धी प्रस्ताव तो है ही जो कौंसिलमें प्रवेश करनेवाले सदस्योंके मार्गदर्शनके लिए है। फिर दक्षिण आफ्रिका और केनियाके सम्बन्ध में, बंगालके नजरबन्दोंके सम्बन्ध में और गुरुद्वारा सम्बन्धी कैदियोंके बारेमें पास किये गये प्रस्ताव भी हैं। मेरे मतसे कांग्रेस संविधानकी खादी-सम्बन्धी धारा परिवर्तनसे सुधर गई है। हम सभा-समारोहों- में ही खादी पहनते हैं, लोग इसका मजाक उड़ाने लगे थे। यदि हमें अपने मताधि- कारकी योग्यतामें खादीकी पोशाकको स्थान देना है तो उचित बात यह है कि हम बराबर खादी पहनें। आशा है कि हरएक कांग्रेस कार्यकर्ता इस प्रस्तावपर स्वयं अमल करेगा और दूसरे लोगोंको भी उसपर अमल करनेके लिए प्रेरित करेगा। किन्तु मुझे अगले अंकमें उन दूसरी बातोंकी चर्चा अधिक विस्तारसे करने की जरूरत है, जिनपर विषय-समिति में वापस लिये गये या नामंजूर किये गये प्रस्तावोंके सम्बन्ध में वाद-विवाद किया गया था ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ६-१-१९२७

२२१. भेंट : 'फ्री प्रेस ऑफ इंडिया' के प्रतिनिधिसे

कोमिल्ला
 
६ जनवरी, १९२७
 

गौहाटी कांग्रेस द्वारा पास किये गये खादीके अनिवार्य उपयोगसे सम्बन्धित प्रस्तावके बारेमें श्री टी० सी० गोस्वामीन एक वक्तव्य दिया था। इस वक्तव्य के सिलसिलेमें 'फ्री प्रेस ऑफ इंडिया' के एक प्रतिनिधिसे मुलाकात में गांधीजीने निम्न- लिखित बात कही :

खद्दरके विषय में श्री गोस्वामीके स्पष्ट वक्तव्यके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। इस वक्तव्यसे शब्दाडम्बर और मिथ्याचारका वह कुहासा, जिसने इस प्रश्नकी चर्चा- के वातावरणको धूमिल कर रखा है, दूर हो जाना चाहिए। अगर खद्दरको टिकना

१. केन्द्रीय व्यवस्थपिका सभाके सदस्य ।

२. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।

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