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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है तो वह अपने गुणोंके बलपर टिके, वरना खत्म हो जाये । इस वक्तव्यमें श्री गोस्वामीका जो रुख प्रकट होता है वह तो यही बताता है कि उन्हें खद्दरका जिक्र भी नागवार है। खद्दरके प्रति उनकी आपत्ति यही नहीं है कि वह अन्धश्रद्धाका विषय बन गया है; वे आर्थिक दृष्टिसे भी खद्दरको आपत्तिजनक मानते हैं। वे कहते हैं कि खद्दरका आर्थिक दृष्टिसे निष्फल होना और विदेशी कपड़ेका स्थायी बहिष्कार अवांछ- नीय होना सिद्ध हो सकता है। यदि में श्री गोस्वामीकी तरह सोचता होता तो में भी खद्दरवाली धाराका उनके जितना ही कड़ा विरोध करता। पहले कुछ विशेष अव सरोंपर ही खद्दर पहननेका नियम था। उसकी जगह अब जो यह नियम बनाया गया है कि हमेशा उसीका उपयोग होना चाहिए, यह परिवर्तन मेरी प्रेरणासे नहीं किया गया। लेकिन इस परिवर्तनको मैं वांछनीय ही नहीं, बल्कि सच्चे राष्ट्रीय जीवन के विकासके लिए आवश्यक भी मानता हूँ और बिना किसी हिचकके उसका समर्थन करता हूँ । राष्ट्रीय भावनासे रहित राजनीति मेरी समझ में नहीं आती। मैं विदेशी कपड़ेके बहिष्कारको कोई राजनीतिक हथकण्डा-भर नहीं मानता; मैं उसे एक स्थायी कर्त्तव्य मानता हूँ। और मैं मानता हूँ कि यदि हम सचमुच इस कर्त्तव्यका पालन करना चाहते हों तो खादीको अपनाकर इसे तत्काल सिद्ध किया जा सकता है।

इतना ही नहीं, मैं एक कदम और आगे जाकर यह भी कहता हूँ कि खद्दरके जरिये विदेशी कपड़ेका बहिष्कार ही एक ऐसी चीज है जिसे हमारा राष्ट्र एक निश्चित समयके भीतर पूरी तरह लागू करने में समर्थ है, और चूँकि समूचे राष्ट्रका संगठित होकर एक ही चीजके लिए प्रयत्नशील होना खद्दरके आर्थिक पहलूमें शामिल है, इसलिए इसके राजनीतिक परिणाम बहुत जबर्दस्त होंगे। इसलिए यदि यह सही और उचित है कि जो स्वराज्य चाहते हैं केवल वे ही लोग कांग्रेसके सदस्य हो सकें तथा उन लोगोंको, जो वर्तमान ब्रिटिश अधिसत्ता बनाये रखना चाहते हैं, कांग्रेससे बाहर रखा जाये, तो फिर यह भी उतना ही ठीक है कि केवल वे ही लोग कांग्रेसके सदस्य हो सकें जो सक्रिय और अनवरत रूपसे खद्दरके उत्पादन और उसकी बिक्री के जरिये विदेशी कपड़ेके बहिष्कारका काम करने के इच्छुक हों। जिसे श्री गोस्वामी खद्दरकी मर्यादा बताते हैं, वह उसकी मर्यादा नहीं बल्कि उसकी खूबी है; खद्दर इसकी परवाह नहीं करता कि उसे पहननेवाला आदमी कैसा है; वह एक सरकारी जासूसके शरीरपर भी वैसे ही सुशोभित हो सकता है जिस प्रकार भारतके किसी सन्त प्रकृतिके सेवकके शरीरपर । क्योंकि राष्ट्रमें तो बड़े और छोटे, स्वस्थ और अस्वस्थ, अच्छे और बुरे, सभी प्रकारके लोग शामिल हैं। अच्छे लोगोंको तो यह चाहिए कि वे बुरे लोगोंको सुधारने और उनकी सेवा करने को आपना सौभाग्यपूर्ण अधिकार मानें ।

[ अंग्रेजीसे ]

फॉरवर्ड, ७-१-१९२७