पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 32.pdf/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७
पाठशालाओं में तकली

बोझ ही क्यों न हो जाये, कदापि नहीं मारेंगे। लूली-लंगड़ी और अनुपयोगी गायोंको पालनेके निमित्त धार्मिक वृत्तिके लोगों द्वारा जो अगणित गोशालाएँ खोली गई हैं वे इस दिशा में किये जा रहे प्रयत्नकी साक्षी हैं। यद्यपि आज उद्देश्यकी महत्ताके अनुपात में ये संस्थाएँ बहुत अच्छी नहीं हैं, तथापि इस बातसे उन गोशालाओंको स्थापित करनेके पीछे जो भावना है, उसका मूल्य कम नहीं होता।

अतएव गोरक्षाका सिद्धान्त मेरी दृष्टिमें बहुत उच्च है। यह सिद्धान्त, जहाँतक जीवित रहनेकी स्वतन्त्रताका प्रश्न है, पशु-जगत्को मनुष्यके साथ बराबरीके दर्जेपर रख देता है। लेकिन जहाँतक मुझे मालूम है, गोरक्षामें विश्वास न रखनेवालोंको गोवध करनेसे जबरदस्ती रोकना हिन्दूधर्मका अंग नहीं है। जहाँतक मनुष्यके लिए सम्भव है अहिंसाधर्मका पालन करके ही हिन्दू लोग मुसलमानों तथा शेष जगत्को अपने विचारोंके अनुकूल बना सकेंगे। वे तो इतना ही करें कि इस सिद्धान्तको अपने जीवनमें उतारें और उसके प्रभावके जरिये बाहरी दुनियाको प्रभावित करें। वे शक्तिबलसे उन लोगोंको नहीं बदल सकते जिनका इस सिद्धान्तमें विश्वास नहीं है। हाँ, अहिंसाकी शक्तिसे निश्चय ही वे उन्हें बदल सकते हैं। पूरी तरह आचरित अहिंसाकी शक्ति कैसी अद्वितीय होती है, इसका हमें कोई अन्दाज ही नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ११-११-१९२६

१४. पाठशालाओंमें तकली

खादी प्रतिष्ठानके डा० प्रफुल्लचन्द्र घोषने पाठशालाओंमें तकली चलानेकी व्यवस्थाके सम्बन्धमें मुझे नीचे लिखा पत्र भेजा है: [१]

मैं मलिकन्दा राष्ट्रीय पाठशालाके अधिकारियोंको बधाई देता हूँ। अधिक सूत तैयार करनेके खयालसे तकलीकी अपेक्षा चरखा हर हालतमें ज्यादा अच्छा है। मेरा यह विचार कभी नहीं रहा कि चरखेके मुकाबले तकलीको हर हालत में प्राथमिकता दी जाये। किन्तु मुझे इस बारेमें कोई सन्देह नहीं है कि हमारी बहुत-सी पाठशालाओंका सामान्य अनुभव पर्याप्त रूपसे यही सिद्ध करता है कि चरखेकी अपेक्षा तकलीका प्रयोग अधिक सफल होता है। इसके कारण स्पष्ट हैं। पाठशालाओंके कमरे इतने छोटे होते हैं कि उनमें सभी लड़कों और लड़कियोंके लिए चरखे रखने की जगह नहीं निकल पाती। दूसरे, यदि चरखोंके लिए पर्याप्त जगह हो भी, तो चरखे तकलियोंकी अपेक्षा बहुत महँगे पड़ते हैं। तीसरी बात यह है कि चरखा अक्सर खराब हो जाता

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र लेखकने मलिकन्दा (ढाका) स्थित राष्ट्रीय पाठशालाके छात्रों द्वारा चरखेपर कताई कार्यकी प्रगतिका ब्योरा देते हुए कहा था कि ऐसा कहना ठीक नहीं है कि पाठशालाओं में चरखेकी अपेक्षा तकलीको हमेशा प्राथमिकता मिलनी चाहिए। यह बात उन छोटे लड़कोंके मामले में हो ठीक है जो चरखा नहीं चला सकते।