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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं भी आपके इन सब विचारोंका हृदयसे अनुमोदन करता हूँ। आपने इन शब्दों को कहकर थियोसाफिकल सोसाइटीके पहले और दूसरे उद्देश्योंका पूरा समर्थन किया है । यह सोसाइटी आज इक्यावन वर्षसे काम कर रही है और जिसका मैं तैंतालीस वर्षसे सदस्य हूँ। किन्तु प्रत्यक्ष है कि वह 'वर्धमान सम्मर्षण और बुद्धिप्रकाश' बहुत ही मंदगतिसे वर्धमान हैं, और उस "संसारके धर्मोके उदार बुद्धिसे अध्ययन " से, जिससे “धर्मपरिवर्तनका वर्तमान अभद्र प्रकार समूल बदल जायेगा" जो मनुष्योंके केवल ललाटोंपर लगाये हुए धर्मके साइन बोर्डोंको, ध्वजोंको, बदल देता है- उस अध्ययनसे भी प्रत्यक्ष है कि अभीतक उन बहुशिक्षित मनुष्योंकी क्रियापर कुछ प्रभाव नहीं पड़ा है जो इन विविध धर्मपरिवर्तनोद्योगोंको पीछेसे चलानेवाले हैं। ऐसी अवस्थाम क्या यह उचित नहीं है कि आप सरीखे बड़े नेता उस परस्पर सम्मर्षण और बुद्धि- प्रकाशकी वृद्धिके विविध धर्मोके उदारभावसे अध्ययनको शीघ्रतर प्रगतिके लिए, विशेष प्रकारसे और प्रत्यक्ष रूपसे यत्न करें (जैसा मेरे प्रस्ताव नम्बर ६ का आशय है), और देश-भरमें स्थान-स्थानपर समितियाँ स्थापित करें जो इस अत्यावश्यक कामको करें जिसको थियोसाफिकल सोसाइटीने इधर कुछ वर्षोंसे छोड़-सा रखा है ? अपने प्रश्नका आशय स्पष्ट करनेके लिए यह और कह देना चाहता हूँ कि जब मैंने अपने पहले प्रश्नमें पूछा कि 'कर्मणा वर्ण:' का सिद्धान्त शुद्धिकार्यका एकमात्र मूल भी और पूर्तिकर्ता भी है या नहीं, तब मेरा अभिप्राय यही था कि यदि यह मान लिया जाये तो सारा मनुष्य संसार तत्काल ही तात्विक हिन्दुत्वमें सम्मिलित किया जा सकेगा, और किसी विशेष धर्मको ध्वजा-पताका चिह्न आदिके बदलनेकी भी आवश्यकता न होगी।

मैं एक (अंग्रेजी) कविके शब्दों में ही उत्तर दे सकता हूँ कि 'मैं दूरके लक्ष्यको देखनेकी इच्छा नहीं करता हूँ, मेरे लिए एक कदम ही पर्याप्त है' । अन्ततोगत्वा भविष्य तो मनुष्य-मात्रकी समस्त वर्तमान क्रियाओंका, जो बहुधा परस्पर विरोधिनी होती हैं, फलस्वरूप ही होगा ।

मेरे प्रस्ताव नम्बर २ में मैंने जिन योग्यताओंकी सूचना की है, कि ये प्रतिनिधियों- में होनी चाहिए, उनमें से कोई भी आपके विचारमें उचित है ?

प्रायः सभी । पर कानूनमें उनका उल्लेख होना ठीक नहीं। यह बात तत्त्वतः निर्वाचकोंके शिक्षण ही की है।

आप प्रायः इसको अनुचित नहीं समझते कि स्वयंसेवकोंका दल कांग्रेसके सम्बन्धमें सार्वजनिक कार्य करनेके लिए बनाया जाये। यदि ऐसा है तो क्या आपके विचारमें यदि स्वयंसेवकोंसे उन योग्यताओंकी आशा की जाये और वह बातें मान ली जायें जिनकी सूचना मैंने प्रस्ताव नम्बर ५ क-खमें की है, तो यह दल बहुत अधिक कार्यसाधक हो जायेगा ? यदि उन योग्यताओंमें से आपके विचारसे कोई अनुपयुक्त हो, या कोई दूसरी योग्यता अधिक उपयुक्त हो तो कृपा करके उसे बताइए।